
गुदड़ी के लाल जैसे थे प्रभात झा
स्मृति शेष **** प्रभात झा का असमय जाना खल गया। प्रभात झा से प्रभात जी होने का एक लंबा सफर है और संयोग से मैं इस सफर का हमराही भी हूँ और चश्मदीद भी। प्रभात मेरी दृष्टि में सचमुच गुदड़ी के लाल थे। प्रभात 1980 में ग्वालियर में उस समय आये थे जब भाजपा का…