मुरैना (मनोज जैन नायक) ए बी रोड (धौलपुर आगरा हाइवे) पर स्थित जैन उपासना स्थल ज्ञानतीर्थ क्षेत्र पर अल्प प्रवास पर आए जैन संत निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जैन दर्शन में तीर्थों का महत्व आध्यात्मिक उत्थान और मोक्ष प्राप्ति के लिए है। ये पवित्र स्थल तीर्थंकरों और संतों के जीवन से जुड़े होते हैं, जिससे भक्तों को उनकी शिक्षाओं को याद करने और पुण्य कमाने का अवसर मिलता है। तीर्थयात्रा के दौरान, भक्त आत्म-अनुशासन, अहिंसा और तपस्या का पालन करते हैं, जो सांसारिक बंधनों से मुक्ति पाने और आध्यात्मिक विकास की ओर बढ़ने में मदद करता है। तीर्थों का निर्माण धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य लोगों को ईश्वर से जुड़ने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करना, आध्यात्मिक शांति और शुद्धिकरण प्रदान करना और धर्म और संस्कृति को बढ़ावा देना होता है। ये स्थान पवित्रता, सत्य, तप और प्रार्थना से जुड़े होते हैं और यात्रा के माध्यम से व्यक्तिगत परिवर्तन को प्रोत्साहित करते हैं। तीर्थस्थल मन को ईश्वर की ओर केंद्रित करने में मदद करते हैं। तीर्थयात्रा करने, तीर्थों की बंदना करने से पुण्य की प्राप्ति होती है, जो मोक्ष प्राप्ति में सहायक होता है। तीर्थयात्रा को मनुष्य की आंतरिक स्थिति को शुद्ध करने और कायाकल्प करने वाली माना जाता है। तीर्थ स्थल धर्म और संस्कृति के प्रतीक के रूप में कार्य करते हैं । अनेकों तीर्थ स्थान साधुओं और संतों की साधना और तपस्या की भूमि रहे हैं, जिससे उनका महत्व और भी बढ़ गया है। तीर्थयात्राएं व्यक्ति को मानसिक शांति प्रदान करती हैं। तीर्थयात्राओं से ज्ञान बढ़ता है। प्राचीन काल में राजाओं और शासकों ने भव्य मंदिरों और तीर्थस्थलों का निर्माण कराया, जिसमें कला और वास्तुकला का विशेष ध्यान रखा गया।
ज्ञानतीर्थ क्षेत्र की वंदना के पश्चात मुनिश्री विबोधसागर महाराज ने संयम साधना के लिए ज्ञानतीर्थ को शांतिप्रिय वातावरण को सर्वोत्तम स्थान बताते हुए कहा कि तीर्थ यात्रा आध्यात्मिक शुद्धि, मानसिक शांति, स्वास्थ्य लाभ और सांस्कृतिक ज्ञान प्राप्ति के लिए अवश्य करना चाहिए। ऐसी यात्रा व्यक्ति को भौतिक चिंताओं से दूर कर ईश्वर से जुड़ने का अवसर प्रदान करतीं हैं, पाप कर्मों से मुक्ति दिलाती है और जीवन में नई ऊर्जा और सकारात्मकता लाती है। प्राचीन तीर्थ स्थलों पर जाने से पौराणिक ज्ञान बढ़ता है। महापुरुषों से जुड़ी कथाएं और परंपराएं का ज्ञान मिलता है । प्राचीन संस्कृति को जानने का मौका मिलता है। इसलिए हमें जब भी समय मिले, तीर्थयात्राएं करते रहना चाहिए ।
आहारचर्या के बाद धौलपुर की ओर हुआ विहार
युगल मुनिराजों ने ज्ञानतीर्थ जिनालय में रात्रि विश्राम किया । प्रातः आहारचर्या एवं सामयिक के पश्चात दोपहर 2 बजे धौलपुर की ओर पद विहार किया । रात्रि विश्राम सरायछोला में होने की संभावना है । मंगलवार 25 नवंबर को प्रातः धौलपुर में भव्य मंगल प्रवेश होगा ।
युगल मुनिराजों ने की ज्ञानतीर्थ की बंदना
बड़े जैन मंदिर से पद बिहार कर पूज्य युगल मुनिराज ज्ञानतीर्थ जिनालय पहुंचे । पूज्यश्री का पाद प्रक्षालन एवं आरती कर अगवानी की गई । तत्पश्चात निर्यापक श्रमण मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने 54 फुट ऊंची कृत्रिम पहाड़ी पर विराजमान मूलनायक भगवान आदिनाथ स्वामी के दर्शन एवं वंदना की । युगल मुनिराज काफी देर तक प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ स्वामी की प्रतिमा को निहारते रहे । ऐसा लग रहा था जैसे वे स्वयं उनसे कोई वार्तालाप कर रहे हों। काफी देर तक मूर्ति को निहारने के बाद उन्होंने मंत्रोच्चारण के साथ आदिनाथ स्वामी को त्रिवार नमोस्तु निवेदित किया ।
तीर्थक्षेत्रों की बंदना संसार मुक्ति में सहायक होती है -मुनिश्री विलोकसागर

