मुजफ्फरनगर मै कल्पतीर्थ मण्डपम् में चल रही है कल्पद्रुम महामण्डल विधान का आराधना 24 समवशरणों की अनुपम रचना
“कल्पतीर्य मण्डपम्” मुजफ्फरनगर में चल रही है “श्री 1008 कल्पद्रुम महामण्डल विधान की आराधना। परम पूज्य संघ शिरोमणि भावलिंगी संत आदर्श श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज के विशाल चतुर्विध संघ (35 पीछी) का मंगलमय सानिध्य प्राप्त हो रहा है मुजफ्फरनगर के पुण्यात्मा श्रदालुओं को। 24 नवम्बर को आराधना के द्वितीय दिवस में विशाल “कल्पतीर्य मण्डपम्” में रचित 24 समवशरणों के मध्य उपस्थित विशाल धर्मसभा को सम्बो करते हुए आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने कहा बहुत संक्षिप्त हो गया है पूर्वकाल में यह दृश्यमान सम्पूर्ण पृथ्वी ही” अजनाभ खण्ड” भारत देश आज के नाम से जानी जाती थी। इसी अजनाभ खण्ड का नाम प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव के पुत्र “चक्रवर्ती भरत” के नाम पर “भारत देश” रखा गया है। आचार्यळीने “कल्पद्रुम विधान का प्रारंभ कब से हुआ यह बताते हुए कहा – प्रथम तीर्थेश आदिनाथ भगवान के समवशरण में प्रथम न्चक्रवर्ती भरत महाराज ने 14 दिनों तक समवशरण की एवं उसमें विराजित जिनेन्द्र तीर्थकर की आराधना की थी। बन्धुओ। आज मुजफ्फरनगर के धर्मात्मा श्रावकों ने स्वयं चक्रवर्ती बनकर के यह कल्पद्रुम महामण्डल विधान” की आराधना रचायी है।
” सान्ध्य महालक्ष्मी” के डायरेक्टर “शरद जैन दिल्ली” ने धर्मसभा के मध्य जैन धर्म के चल-अचल तीर्थों की रक्षा का आहवान किया। परमपूज्य आचार्य श्री ने तीर्यरक्षा हेतु समाज को जागरूक करते हुए कहा
बन्धुओ ! तीर्थ वह होता है जहाँ से जीव अपना उद्वार करते हैं। तीर्थ हमारी रक्षा करते हैं, हम और आप तो मात्र अपने कर्त्तव्य का निर्वाह मात्र कर सकते हैं। आप लोग तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं, अपने घर-दुकान की प्रतिदिन सफाई करते हो, तीर्थयात्रा पर आयें तो यथायोग्य वहाँ की शुद्धि का ध्यान अवश्य रखें। ऐसे कितने श्रावक-श्राविकाये हैं जिनको तीर्थों से जीवन के नए आयाम प्राप्त हुये हैं, महावीर जी तीर्थ क्षेत्र अनेकों माताओं की सूनी गोद भरी हैं।
आचार्य श्री ने कहा- आप अपने परिवार के बच्चों को भी एक गुल्लक दीजिए, भले ही वे एक रुपया मात्र उसमें डालें, इससे उनमें तीर्यरक्षा का भाव एवं संस्कार जागृत होता है। आज मैं तीर्थरक्षा हेतु मंगल आशीर्वाद प्रदान करता हूँ “आप अपना कर्तव्य पालन करते हुए ” तीर्थ चक्रवर्ती” बनकर अपने पुण्य का सदुपयोग तीर्थों के संरक्षण में अवश्य करें “।
“तीर्थ चक्रवर्ती” बनकर तीर्थों के संरक्षण में करें अपने पुण्य का सदुपयोग – भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

