
दुःख, संकट, रोग निवारक श्री भक्तामर स्तोत्र विनय का सुगंधित गुलदस्ता है- भावलिंगी संत परम पूज्य आचार्य प्रवर श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज
सहारनपुर-मानव मिथ्या अहंकार और अपनी हठधर्मिता के साथ जीवन के सुख को नष्ट कर देता है,अपने अहंकार के जाल में फंसकर सोचता है कि वह ऊंचाइयों को छूकर,महान बन रहा है,किन्तु स्मरण रहे,अहंकारी पूर्व पुण्योदय से उच्च पद प्राप्त कर भी ले, पर वह कभी महान नहीं हो सकता; उसका जीवन पतन की ओर ही…