“उत्तम आर्जव धर्म”मानव दुःखी है, पदार्थ के कारण नही, अपने ही लोभ के कारण →भावलिंगी संत श्री दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
उत्तम शौच धर्म – शुचिता का होना ही शौच धर्म है। लोभ कषाय के कारण मानव का मन सदा अशुचि बना रहता है। संतोष की भावना जब हृदय में प्रकट होती है तब मन में शुचिता का भाव जाग्रत होता है। इस धर्म के पालन से छोटे-बडे का भेद मिट जाता है। उत्तम शौच धर्म…

