युवा और श्रम का पुनर्जागरण : गुरुजी की दूरदृष्टि से आत्मनिर्भर भारत की दिशा

शरद पूर्णिमा, वह पावन रात्रि जब सम्पूर्ण सृष्टि चंद्रमा की पूर्ण आभा में स्नान करती है,
ज्ञान, तप और सृजन की त्रिवेणी एकाकार होती है। यह वही शुभ तिथि है जब संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं आचार्य श्री समय सागर जी महाराज जैसे महामानवों ने इस धरती पर अवतार लिया – ताकि समाज को पुनः श्रम, संयम और आत्मनिर्भरता का मार्ग दिखाया जा सके।
इस पावन अवतरण दिवस पर हम केवल उनके जीवन का स्मरण नहीं करते, बल्कि उस विचारधारा को नमन करते हैं जो आज विश्व की सबसे बड़ी आवश्यकता बन चुकी है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य : शिक्षित युवा, पर अवसरहीन भविष्य – हाल ही में Nothing कंपनी के संस्थापक और सीईओ कार्ल पाई (Carl Pei) ने एक ट्वीट कर वैश्विक ध्यान खींचा –
> “Europe has some of the best universities but stopped investing in the youth.
How do we change this trend?”
(“यूरोप में दुनिया के सर्वोत्तम विश्वविद्यालय हैं, पर युवाओं में निवेश रुक गया है। हम इस प्रवृत्ति को कैसे बदलें?”)
उनका यह विचार उस रिपोर्ट पर आधारित था जिसमें यूके की भर्ती वेबसाइट Reed के प्रमुख जेम्स रीड ने बताया कि
सिर्फ तीन वर्षों में ही ग्रेजुएट युवाओं के लिए नौकरियों की संख्या 1,80,000 से घटकर मात्र 55,000 रह गई है।
उन्होंने इसे “white-collar recession” कहा — अर्थात शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी का संकट।
यह स्थिति केवल यूरोप या ब्रिटेन की नहीं है। यह उस वैश्विक मानसिकता का परिणाम है जिसमें शिक्षा का अर्थ डिग्री बन गया है, पर कौशल और श्रम की शिक्षा पीछे छूट गई है । गुरुजी की दूरदृष्टि : श्रम ही सच्ची साधना
ऐसे समय में, जब दुनिया शिक्षित बेरोज़गारी से जूझ रही है,
संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की युगदृष्टि ने वर्षों पूर्व इसका उत्तर प्रस्तुत किया था।
उन्होंने कहा —
> “शिक्षा वही सच्ची है, जो व्यक्ति को श्रमशील बनाए और समाज के लिए उपयोगी बने।”
गुरुजी के मार्गदर्शन में प्रारंभ हुआ हथकरघा प्रकल्प केवल वस्त्र निर्माण नहीं,
बल्कि मानव निर्माण का आंदोलन है।
यहाँ ग्रामीण युवा और महिलाएँ हाथों से कपड़ा बुनना सीखते हैं, पर वस्त्र के साथ वे स्वाभिमान, अनुशासन और आत्मनिर्भरता भी बुनते हैं।
यह प्रकल्प यह सिखाता है कि जब शिक्षा श्रम से जुड़ती है, तभी जीवन सार्थक होता है । गुरुजी ने जो बीज वर्षों पहले बोया था, वह आज “आत्मनिर्भर भारत” के रूप में फल-फूल रहा है।
आचार्य श्री समय सागर जी महाराज : विचार से व्यवहार तक
आचार्य श्री समय सागर जी महाराज, गुरुजी की ही परंपरा के तेजस्वी दीपक हैं,
जो आज श्रम और संयम के इस संदेश को धरातल पर मूर्त रूप दे रहे हैं। उनके सान्निध्य में संचालित हथकरघा केंद्र न केवल वस्त्र निर्माण के केंद्र हैं,
बल्कि जीवन मूल्य, अनुशासन और सृजनशीलता के विद्यालय हैं। उनकी प्रेरणा से असंख्य युवा और महिलाएँ आज स्वावलंबन और सम्मानपूर्ण जीवन की दिशा में अग्रसर हैं। यह सच्चा “रोज़गार” नहीं, बल्कि जीवन-निर्माण का संस्कार है।
अवतरण दिवस का संदेश
जिस प्रकार शरद पूर्णिमा की चाँदनी अंधकार को दूर करती है,
उसी प्रकार गुरुजी और आचार्य श्री समय सागर जी महाराज के जीवन से प्रस्फुटित यह विचारधारा आज समाज के अंधकार को दूर कर रही है।
जब पूरी दुनिया “शिक्षित बेरोज़गारी” की समस्या से जूझ रही है, भारत की इस पवित्र भूमि पर गुरुजी के प्रेरक विचार
युवाओं के जीवन में श्रम, साधना और स्वाभिमान का उजाला फैला रहे हैं।
निष्कर्ष-
अवतरण दिवस केवल जन्म की स्मृति नहीं है —यह उस दिव्य दृष्टि की पुनःस्मृति है जिसने युगों को दिशा दी। संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज और आचार्य श्री समय सागर जी महाराज दोनों ने अपने जीवन से यह सिखाया कि —
> “रोज़गार की नहीं, कर्म की तलाश करो।
श्रम ही पूजा है, और आत्मनिर्भरता ही सच्ची विजय है।”
इस शरद पूर्णिमा, इस अवतरण दिवस पर,
आइए हम सब संकल्प लें कि शिक्षा के साथ श्रम का सम्मान लौटाएँ, और गुरुजी की इस युगांतरकारी प्रेरणा को जन-जन तक पहुँचाएँ।
(प्रेषक -ब्रह्मचारी प्रणव भैयाजी, अजमेर

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