क्रोध समस्या है, क्षमा हर समस्या का जीवंत समाधान है भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज

उत्तर प्रदेश सहारनपुर-उत्तमक्षमा धर्म- पर्वों का राजा पर्युषण महापर्व प्रारंभ हो चुके हैं। पर्व का अर्थ होता है-“जोड “। जो हमें अपने आप से जोड़ दे वही पर्व है। दशलक्षण महापर्व मानव को आत्म गुणों से जोड़ते हैं। आत्मा के ही दश गुणों, लक्षणों को ही दशलक्षण धर्म कहा जाता है।
आज मानव अपने ही आत्म गुणों को भुलाकर अपने ही स्वभगुणों को विपरीत रूप से प्रगट कर स्वयं दुःखी हो रहा है। आत्मा का स्वभाव क्षमा है किन्तु मनुष्य क्षमा गुण को भुलाकर क्षमा के विपरीत क्रोध को प्रगट कर दुःखी हो रहा है।
मुनिराज परम पूज्य भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्श सागर जी महा-उत्तम क्षमा ” धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा
उत्तम क्षमा धर्म – आत्मा क्षमा स्वभावी है। यदि कोई क्रोध कषाय का
कारण उपस्थित हो जाये, तो भी क्षमा धर्म का पालन करना वास्तव में वीरों का कार्य है। क्रोध समस्या का समाधान नहीं अपितु स्वयं एक समस्या है। क्षमा हर समस्या का जीवंत समाधान है।
उत्तम क्षमा धर्म – धर्म कभी धर्मी के बिना, धर्मी को छोड़कर नहीं रहता, अगर आत्मा में क्षमा धर्म का अनुभव होता है तो समझ लेना उस समय आप अपने धर्मी आत्मा के निकट हैं। आत्मा के निकट रहना चाहते हो, तो क्षमा भाव में रहने की कला सीख लो। क्षमा का विपरीत भाव है क्रोध। क्रोध आत्मा का शत्रु है। क्रोध आते ही आत्मा विवेकहीन हो जाता है। क्रोध सबसे पहले विवेक पर अटैक करता है, क्रोध के बाद सिर्फ हाथ आता है पश्चाताप और आँखों में रह जाते हैं आँसू, जिन्दगी भर बहाने के लिए।
क्रोध को कैसे जीतें ? जब कोई क्रोध का निमित्त बने तो मौन हो
जाओ, और अगर फिर भी बात न सम्हले तो उस स्थान को बदल दो, आप पायेंगे कि कुछ समय बाद आपका क्रोध शांत हो चुका है, व्यक्ति क्रोध में अधिक समय तक नहीं ठहर सकता। क्योंकि क्रोध की उम्र ज्यादा नहीं होती। क्रोध तो क्षणिक होता है लेकिन उसका फल बहुत विकराल और विनाशकारी होता है, क्षमा से जीवन में धर्म की शुरुआत होती है। क्रोध से आत्मा जल जाये तो भव-भव बिगड़ जाते हैं और क्षमा में आत्मा ढल जाये तो मात्र भव सुधरते ही नहीं, अपितु आत्मा भव का क्षय करके भगवान बन जाता है।

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