वैराग्य की शुरुआत स्वयं से होती है- मुनि श्री विव्रत सागर जी

उत्तरप्रदेश शामली मै आज जैन धर्मशाला में 48 वे दिन परम पूज्य मुनि श्री 108 विव्रत सागर जी मुनिराज प्रवचन करते हुए कहते आत्म-पहचान के महत्व पर जोर देते हैं, यह बताते हुए कि स्वयं को शरीर या नाम के बजाय आत्मा के रूप में जानना आवश्यक है। वे कहते हैं कि यह हमारा सौभाग्य है कि गुरु हमें ‘भव्य’ (मोक्ष के योग्य) के रूप में संबोधित करते हैं, इसलिए हमें अपने अंदर उस भव्यता को प्रकट करना चाहिए। आत्महित के लिए सच्चे देव, शास्त्र और गुरु के पास पहुंचना महत्वपूर्ण है, लेकिन सबसे पहले यह निर्णय करना होगा कि ‘मैं आत्मा हूँ’। जैन आगम के अनुसार आत्मा के तीन प्रकारों का परिचय देते हैं: बहिरात्मा, अन्तरात्मा और परमात्मा। वे बताते हैं कि सभी देहधारी जीवों में ये तीन प्रकार की आत्माएं होती हैं और व्यक्ति को अपनी वर्तमान स्थिति का निर्णय करना चाहिए कि वह कौन सी आत्मा है, क्योंकि इसी पहचान से आगे की आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ होगी। बहिरात्मा वह जीव है जो अपने शरीर को ही अपनी आत्मा मानता है। जब शरीर की प्रशंसा होती है तो वह प्रफुल्लित होता है और जब शरीर की निंदा होती है तो उसका चेहरा उतर जाता है। मुनिराज उदाहरण देकर समझाते हैं कि जब तक व्यक्ति की पहचान उसके शरीर और नाम से होती है, तब तक वह बहिरात्मा की स्थिति में रहता है। अन्तरात्मा वह है जिसे ‘चित्त के दोषों’ (राग, द्वेष, मोह के परिणाम) में अपनी आत्मा की बुद्धि नहीं होती, बल्कि वह इन्हें स्वयं से अलग देखता है और उनसे छूटने का प्रयास करता है। परमात्मा वह है जो अत्यंत निर्मल है। मुनि श्री श्रोताओं से पूछते हैं कि क्या वे बहिरात्मा हैं या अन्तरात्मा, और उन्हें अपनी वास्तविक स्थिति को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
आत्मा में अनंत गुण होते हैं, जिनमें से एक ‘श्रद्धा’ (विश्वास या बिलीव) है। सम्यक दर्शन की परिभाषा सरल शब्दों में दी गई है: ‘मेरी आत्मा परमात्मा बन सकती है’ – इस बात पर श्रद्धा ले आना ही सम्यक दर्शन है। यह विश्वास ही आध्यात्मिक उन्नति का पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
मुनिराज स्पष्ट करते हैं कि आत्मा स्वभाव से शुद्ध है, लेकिन वर्तमान में राग, द्वेष, मोह और कषायों जैसी अशुद्धियों से ढकी हुई है। वे ‘जल और बर्फ’ के उदाहरण से समझाते हैं कि आत्मा में शुद्ध बनने की शक्ति है। शुद्धि का मार्ग ‘पकड़ी हुई रस्सियों’ (सांसारिक संबंधों और आसक्तियों) को छोड़ने में है। इन रस्सियों को धीरे-धीरे छोड़ने से तनाव और बंधनों से मुक्ति मिलती है, जिससे आत्मा अपनी शुद्धता की ओर बढ़ती है। वैराग्य की शुरुआत स्वयं से होती है, और यह एक बीज से विशाल वृक्ष बनने तक की यात्रा है, जहाँ हर जीव में सिद्ध बनने की शक्ति है।
आज का चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन गैस वालो के परिवार द्वारा किया गया एवं पाद प्रक्षालन शुभम जैन राजीव जैन द्वारा किया गया शास्त्र भेंट मोहित जैन सुनीता जैन डॉक्टर अनीता जैन रेखा जैन रीना जैन द्वारा करके पुण्य लाभ अर्जित किया। बड़े महाराज जी द्वारा आज चतुर्दशी होने के कारण अचानक ही उपवास की घोषणा कर दी गई जबकि छोटे महाराज की आज की आहार चर्या सुशील जैन कुकू जैन मोहल्ले वालों के परिवार द्वारा संपन्न हुई।

Please follow and like us:
Pin Share