सहारनपुर-सहारनपुर में चातुर्मास कर रहे परमपूज्य संघ शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ने “श्री भक्तामर महिमा शिक्षण शिविर “में उपस्थित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये आचार्य श्री ने कहा। आपको अपने जीवन में जो भी अनुकूलतायें प्राप्त हो रही हैं वह आपके द्वारा मेहनत करने से ही प्राप्त हो रहीं हो, यह कोई आवश्यक नहीं है। मनुष्य को अपने जीवन में जो उपलब्धियाँ – सफलतायें प्राप्त हो रही हैं वह एक मात्र धर्म का ही फल हुआ करती हैं। बन्धुओ। दर्पण की कीमत तभी तक है जब तक उसके पीछे पालिए लगी है, जब दर्पण के पीछे से पालिए अलग हो जाए तो उस दर्पण की कोई कीमत नहीं होती, उसे अलग कर दिया जाता है, ध्यान रखो आपके जीवन में जो भी सुख सुविधायें दिखाई दे रही हैं वे सब धर्म रूपी पालिश के कारण ही दिखाई दे रही हैं। धर्म रहित मनुष्य पालिश रहित दर्पण की तरह निस्सार हो जाते हैं।
धर्म की जीवन में महत्वता बताते हुए आचार्य श्री ने कहा –
समस्त सुखों का कारण धर्म है। मनुष्य की सबसे बड़ी भूल यही है कि वह अनुकूलताओं में धर्म को भूल जाता है। और जब पुण्य नाश होता है जीवन में दुःख आता है तब अनेकों उपायों से भी उन दुःखों का नाश नहीं होता। जब मानव अपनी भूल सुधारकर पुनः धर्म का आश्रय करता है तब ही जीवन से दुःखों का निर्मूलन हो पाता है।
स्त्री और पुरुष पर्याय की महानता बताते हुये आचार्य श्री ने कहा। स्त्री और पुरुष के संबंध से एक परिवार की संरचना होती है। दाम्पत्य जीवन जीते हुए जैसे भावों से दम्पति संतान को जन्म देते हैं वही भाव उस संतान के आगामी जीवन का निर्माण करते हैं। भोग एवं विलास के परिणामों से जन्मी संतान अपना जीवन भी भोगमय जीकर नष्ट कर देते हैं किन्तु जो माता-पिता स्वयं संस्कार मय, संयम मय जीवन जीते हुए धर्मध्यान पूर्वक संतान को जन्म देते हैं उनकी संतान स्वयं तीर्थंकर आदि महापुरुष बनकर अपने माता-पिता को जगत माता एवं जगत पिता होने का गौरव प्रदान कर देते हैं।
संतानों को जन्म तो सैकड़ों माता-पिता देते रहते हैं यहि जन्म देना ही है तो एक ऐसी सन्तान को जन्म दो जो धर्ममार्ग पर चलते हुए आपको एक मुनिराज अथवा आर्यिका के माता-पिता होने का गौख प्रदान कर सकें। यदि आपने ऐसी संतान को जन्म दिया तो याद रखो आपका दाम्पत्य जीवन और स्त्री अथवा पुरुष पर्याय को प्राप्त करना सार्थक हो सकेगा !
एक ऐसी संतान को जन्म देना जो आपको जगत माता – जगत पिता होने का गौरव प्रदान कर सके- श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज
