मुरैना (मनोज जैन नायक) नगर के आध्यात्मिक वर्षायोग 2025 के तहत श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा जैन मंदिर में चातुर्मासरत आचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के परम प्रभावक शिष्य युगल मुनिराजश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने आचार्यश्री कुंद कुंद स्वामी द्वारा रचित ग्रंथ समयसार की वाचना में आज बताया कि मोह रूपी मदिरा शराब से भी ज्यादा नशीली होती है । शराब अथवा किसी भी अन्य व्यसन का नशा तो कुछ देर में या कुछ समय में उतर जाता है और नशा उतरते ही व्यक्ति को सच्चाई का अनुभव होने लगता है । वो व्यक्ति यथार्थ से अवगत हो जाता है । किंतु मोह रूपी मदिरा के नशे में व्यक्ति अपनी आत्मा को ही भूल जाता है । वह अपने मूल स्वरूप से भटक जाता है । ऐसा व्यक्ति चार गति चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता रहता है । मोह के वशीभूत हमारी आशक्ती बढ़ती जाती है । यह मेरा है, यह मैंने किया है, धन के प्रति, परिवार के प्रति, जमीन जायदाद के प्रति, पद के प्रति आशक्ति बढ़ती जाती है । जिस कारण जीव का संसार भ्रमण बढ़ जाता है । जिस दिन हम यह चिंतन कर लेगें कि आत्मा का कुछ नहीं हैं, आत्मा तो स्वतंत्र है, आत्मा तो अजर अमर है, शेष सभी बस्तुएं नाशवान हैं, पुदग़ल बस्तुएँ तो नष्ट होना हैं । इनकी आशक्ती ही हमारे दुखों का कारण हैं । अतः हमें राग द्वेषों को त्यागकर आत्मा का चिंतन करना चाहिए ।
मोक्ष मार्ग के लिए आशक्ति त्यागना होगी
पूज्यश्री ने कहा कि यह मोहनीय कर्म सबसे जटिल है, यह सबसे अधिक समय तक आत्मा से जुड़ जाता है । अतः हमें विषयों के प्रति, पर पदार्थ के प्रति, संसार के प्रति आशक्ति कम करते हुए मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ते रहने का प्रयास करते रहना चाहिए ।
जब तक हम मोह के मायाजाल में फंसे रहेंगे, तब तक इस संसार के जन्म मृत्यु के जाल से मुक्त नहीं हो सकते । मोह को त्यागे बिना आत्मानुभूति हो ही नहीं सकती । मोक्ष मार्ग पर बढ़ने के लिए मोह का त्यागना ही होगा ।
24 अगस्त को होगी तृतीय तीर्थंकर प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता
बड़ा मंदिर कमेटी के ऑडिटर एवं प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के संयोजक डॉ. मनोज जैन एवं विमल जैन बबलू ने बताया कि पूज्य मुनिराजश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज के पावन सान्निध्य में भूत भविष्य एवं वर्तमान के 24 तीर्थंकरों के जीवन चरित्र एवं व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित तृतीय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन रविवार 24 अगस्त को शाम 06 बजे से 07 बजे तक होने जा रहा है । जिसमें 08 वर्ष से 90 वर्ष तक के साधर्मी बंधु भाग ले सकते हैं । प्रतिभागिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले सभी प्रतियोगियों को पुरस्कार प्रदान कर बहुमान किया जायेगा ।
पर्वराज पर्युषण पर्व 28 अगस्त से
वरिष्ठ समाजसेवी अनूप जैन भंडारी ने बताया कि जैन धर्मावलंबियों का सबसे बड़ा पर्व पर्युषण पर्व 28 अगस्त से 06 सितंबर तक संयम की साधना के साथ, विभिन्न धार्मिक आयोजनों के साथ मनाए जाएंगे । ये पर्व दस दिन मनाया जाता है, इसलिए इन्हें दसलक्षण पर्व भी कहा जाता है। यह पर्व पंचमी से लेकर अन्नत चौदस तक चलते हैं। इन पर्वों का जैन समुदाय में अत्यधिक महत्व होता है । पर्वों के दस दिनों में सभी साधर्मी पूजन, भक्ति, व्रत, उपवास, स्वाध्याय आदि करते हुए जाने अनजाने में हुए पापों को नष्ट करने हेतु संयम की साधना करते हैं।
जैन दर्शन में धर्म के दस लक्षण बताए गए हैं, उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शोच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन, उत्तम ब्रह्मचर्य । प्रतिदिन एक एक लक्षण की व्याख्यान सहित पूजन की जाती है । इन दस दिनों में सभी लोग पूर्णतः सादगी के साथ संयम के मार्ग पर चलते हुए श्री जिनेंद्र प्रभु के बताए हुए मार्ग पर चलते हुए अपने पापों को नष्ट करने का प्रयास करते हैं।
मोह को त्यागे बिना आत्मानुभूति संभव नहीं -मुनिश्री विलोकसागर
