सोलह दिवसीय श्रीशांतिनाथ विधान का हुआ शुभारंभ

मुरैना (मनोज जैन नायक) सोलह दिवसीय श्री शांतिनाथ महामंडल विधान का अति भव्य शुभारंभ श्री वर्धमान चैत्यालय जैन संस्कृत महाविद्यालय परिसर में हुआ ।
जैन संस्कृत विद्यालय के प्राचार्य प्रतिष्ठाचार्य पंडित चक्रेश शास्त्री ने बताया कि सोलह दिवसीय शुक्ल पक्ष में सोलह दिन श्री शांतिनाथ विधान कराने का विशेष महत्व है । किसी भी शुक्ल पक्ष में एक दिन बढ़ने से यह विधान शुक्ल पक्ष की एकम से प्रारंभ होकर पूर्णमासी तक किया जाता है । श्रावण माह के सोलह दिवसीय शुक्ल पक्ष में यह विधान शुक्रवार 25 जुलाई से 09 अगस्त तक निरंतर 16 दिन तक होगें । सोलह दिवसीय श्री शांतिनाथ महामंडल विधान को पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति से करने पर मन की शांति एवं निर्मलता प्राप्त होती है । साथ ही दरिद्रता दूर होकर आर्थिक उन्नति का मार्ग अग्रसर होता है । सांसारिक प्राणी के सभी मनोरथ पूर्ण करने वाला यह विधान वैसे तो कभी भी कराया जा सकता है लेकिन शुक्ल पक्ष में सोलह दिन करने से सभी मनोरथों की पूर्ति होती है ।
संत शिरोमणि समाधिस्थ आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज द्वारा दीक्षित आचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के शिष्य मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज का पावन आध्यात्मिक मंगल वर्षायोग बड़े जैन मंदिर में धर्म प्रभावना के साथ चल रहा है । पूज्य युगल मुनिराजों के पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से उन्हीं के मंगल सान्निध्य में 16 दिवसीय श्री शांतिनाथ महामंडल विधान का शुभारंभ श्री गोपाल दिगंबर जैन संस्कृत महाविद्यालय के श्री वर्धमान चैत्यालय परिसर में हुआ । उक्त विधान का आयोजन सकल जैन समाज के सहयोग से हो रहा है, जिसमें प्रतिदिन अलग अलग पुण्यार्जक परिवार रहेगें। विधान में प्रतिदिन विद्यालय (जैन छात्रावास) के सभी छात्रगण विधान के अनुष्ठान में सम्मिलित होगें । विधान के समापन पर 10 अगस्त को विश्व शांति महायज्ञ होगा ।
जैन संस्कृत विद्यालय के बच्चों ने की पूजा भक्ति
प्रतिष्ठाचार्य चक्रेश शास्त्री के आचार्यत्व एवं निर्देशन में विधान के शुभारंभ पर प्रथम दिन जैन छात्रावास के छात्रों ने उत्साह पूर्वक भगवान शांतिनाथ की आराधना में पूर्ण श्रद्धा एवं भक्ति के साथ भाग लिया । सभी छात्रगण केशरिया परिधान में पूजन की थाली में अष्टद्रव्य के साथ भगवान शांतिनाथ स्वामी को अर्घ समर्पित कर रहे थे । नन्हें मुन्ने बच्चों के मुख से संस्कृत के श्लोक एवं मंत्रोचारण को सुनकर सभी उपस्थित बंधु तालियां बजाकर उनके पुण्य की अनुमोदना कर रहे थे । वाद्य यंत्रों की संगीतमय धुन पर भक्ति नृत्य की मनोहारी प्रस्तुति सभी का मन मोह रही थी ।
क्या है श्री शांतिनाथ महामंडल विधान
जैन दर्शन में 24 तीर्थंकर हुए हैं, जिसमें 16वें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ स्वामी हैं। जैन धर्म में, शांति विधान एक महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान है जो शांति, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से भगवान शांतिनाथ की आराधना पर केंद्रित होता है, जो जैन धर्म के 16वें तीर्थंकर हैं। शांति विधान में, भक्त विभिन्न प्रकार के अर्घ्य और मंत्रों का जाप करते हुए भगवान शांतिनाथ की पूजन, भक्ति और आराधना करते हैं।
श्री शांतिनाथ विधान में एक विशेष माढ़ने पर अष्टद्रव्य के माध्यम से अर्घ समर्पित किए जाते हैं। यह एक विशेष धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें श्री शांतिनाथ भगवान की आराधना करते हुए विशेष मंत्रों के साथ श्रीफल एवं बादाम आदि अर्पित किए जाते हैं । यह विधान 120 अर्घ्य से पूर्ण होता है, जिसमें अष्ट प्रतिहार्य, पंच परमेष्ठी, 32 इंद्रों और 64 ऋद्धि युक्त भगवान की आराधना की जाती है ।

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