सहारनपुर में गूंज रही है “भक्तामर महिमा ” जीवन में अच्छाईयाँ बड़ीं कठनाई से प्राप्त होती है और बुराईयाँ, मानव के के जीवन में हरपल दरवाजा खटखटाती रहती हैं, बड़ी गजब की बात है कि मानव अपने जीवन में गुण चाहता है, अच्छाईयाँ चाहता है लेकिन जब भी बुराईयाँ आपका दरवाजा खटखटाती हैं आप तत्काल अपना दरवाजा खोल-कर उन बुराईयों का स्वागत, सत्कार, आवभगत करने लग जाते हो। आपसे आदर-सत्कार पाकर वे बुराईयाँ आपके जीवन में घर बना लेती हैं। ऐसा मांगलिक उद्बोधन सहारनपुर धर्मनगरी में विराजमान परम पूज्य संघ शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ने जैनबाग में “वीरोदय तीर्थ मण्डपम्” के मध्य उपस्थित धर्मसभा के बीच दिया। परम पूज्य आचार्य गुरुवर ने अपने प्रवचन में बतलाया यह जगत अच्छाईयों का गुलदस्ता है। आवश्यकता इस बात की है कि आप उन्हें पहिचानकर उनका स्वागत करें तो वे अच्छाईयाँ अवश्य ही आपके जीवन में प्रवेश पायेंगी और यदि आप उन्हें महत्व नहीं देते हैं तो यह जगत् रुपी गुलदस्ता कांटों से भी भरा है। निर्णय आपका है कि आप फूल चुनते हैं या काटे। आप इस जगत् को जैसा देखना चाहते हैं आपको यह जगत् का गुलदस्ता वैसा ही दिखाई देगा। आपकी दृष्टि यदि गुणी है अर्थात् गुणों को ही गृहण करती है तब आपको जगत् में सब गुणवान ही नजर आयेंगे, और यदि आपकी दृष्टि छिद्रान्वेषी-दोषग्राही है तब आपको सभी गुणहीन- दोषी नजर आयेंगे। दृष्टि आपको निर्णय आपका कि आप क्या बनना चाहते हैं और क्या देखना चाहते हैं?
आज मनुष्य खोटा सिक्का चलाकर असली वस्तु प्राप्त करना चाहता है अर्थात् स्वयं तो अशुभ भावों से भरा है और चाहता है कि मेरे जीवन में भी धर्म के फल दिखाई दें, मेरे जीवन कभी-कभी आपका सिक्का में भी सुख-शान्ति हो, जो संभव नहीं है। तो सच्चा है किन्तु आप किसी फर्जी दुकान पर पहुंच गये जहाँ असली वस्त प्राप्त नहीं होती तब भी आपको असली वस्तु की प्राप्ति नहीं हो सकती अर्थात् कभी आपकी श्रद्धा- आपके भाव उत्तम श्रेष्ठ है किन्तु आप वहाँ पहुँच गये जहाँ आपकी श्रद्धा के साथ खिलवाड़ किया जाता है तब भी आपके जीवन में धर्म के फल दिखाई नहीं दे सकते हैं। इसीलिए हमेशा आपका सिक्का भी असली हो और वस्तु भी असली प्राप्त हो । बन्धुओ ! हमेशा आप अपने भाव उत्तम बनाकर रखें और उत्तम पंच परमेष्ठी की शरण को प्राप्त करें तब अवश्य ही आपका कल्याण होगा
गुलदस्ता है यह जगत्, आप क्या चुनते हैं – फल या काँटे- भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज
