संयम की साधना से आत्मबल की प्राप्ति होती है -मुनिश्री विलोकसागर

मुरैना (मनोज जैन नायक) श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के छठवें दिन कर्म दहन विधान का पूजन करते हुए 256 अर्घ समर्पित किए गए । जो कर्म हमारी आत्मा पर आवरण डाले हुए अनन्त चतुष्टय को प्रगट नहीं होने देते हैं ऐसे अष्टक्रमों से मुक्त होने के लिए ही पूजन, विधान आदि किए जाते हैं। यह कर्म हमें आत्मा का बोध नहीं होने देते हैं। हमारे अंदर अन्नत बल है, अन्नत ज्ञान है लेकिन हम कर्मों के जाल में ऐसे उलझे हुए हैं कि अपनी शक्ति का अहसास नहीं कर पाते। शेर जैसा बल होते हुए भी हम स्वयं को बिल्ली जैसा कमजोर महसूस करते हैं । संयम की साधना से हमें आत्मबल की प्राप्ति होती है, हमें अपनी शक्तियों का भान होता है, अपनी ताकत का अहसास होता है । हम दृढ़ता के साथ संयम की साधना करते हैं, किसी नियम आदि का पालन करते हैं तो जड़ कर्म हमसे दूर भाग जाते है । बस हमें यह अहसास होना चाहिए कि हम भगवान आदिनाथ से लेकर भगवान महावीर स्वामी तक जिनेंद्र देव के कुल में पैदा हुए हैं। हम भी जिनेंद्र प्रभु की तरह कठोर तप कर सकते हैं, ज्ञान की प्राप्ति कर सकते हैं, संयम रूपी व्रतों को धारण कर सकते हैं। यदि हमारा तपोबल मजबूत होगा तो ये कर्म हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते । ये तो जड़ हैं और हम चैतन्य हैं। जिस दिन हमें अपनी चैतन्यता का अहसास हो जाएगा, उस दिन हम भी अरिहंत और सिद्धों की श्रेणी में आ जायेंगे, हम भी इस असार संसार से, जन्म मरण के चक्र से मुक्त होकर सिद्धत्व को प्राप्त कर लेंगे। उक्त उद्गार जैन मुनिराजश्री विलोकसागरजी महाराज ने बड़े जैन मंदिर में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के छठवें दिन धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
जैन संत मंत्रोचारण के साथ 09 जुलाई को लेंगे चातुर्मास का संकल्प
प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी संजय भैयाजी (मुरैना वाले) ने वर्षायोग के संदर्भ में जानकारी देते हुए बताया कि दिगंबर जैन आमनाय में जैन साधु सावन का महीना प्रारंभ होते ही अपना पद विहार (आवागमन) रोककर, एक ही स्थान पर रुककर वर्षाकाल के चार माह, आत्म साधना एवं धर्म प्रभावना करते हैं । पूज्य दिगम्बर मुनिराज, आर्यिका माताजी, क्षुल्लक, क्षुल्लिका सभी साधु साध्विया अहिंसा धर्म का पूर्ण पालन करते हुए प्रकृति में उत्पन्न होने वाले जीवो की रक्षार्थ वे एक ही स्थान पर 4 महीने रुक कर साधना किया करते हैं। आषाढ़ मास की चतुर्दशी को सभी साधु गण भगवान के समक्ष उपवास करके भक्तियों का पाठ करते हुए मंत्रोचारण के साथ चातुर्मास का संकल्प करते हैं एवं प्रतिक्रमण और प्रायश्चित करते हैं । इसी तारतभ्य में बुधवार 09 जुलाई को संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य आचार्यश्री आर्जवसागरजी महाराज के मंगल आशीर्वाद से उनसे दीक्षित मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विवोधसागरजी महाराज भक्तियां करते हुए मुरैना के बड़े मंदिर में चातुर्मास की स्थापना करेंगे। आगामी 20 जुलाई रविवार को समाज के द्वारा कलश स्थापना करके बृहद रूप से कार्यक्रम संपन्न होगा।
बुधवार को सिद्धों की आराधना करते हुए 512 अर्घ होगें समर्पित
बड़े जैन मंदिर में चल रहे आठ दिवसीय सिद्धचक्र महामंडल विधान में जिन्होंने समस्त कर्मों को छेद करके सिद्ध अवस्था प्राप्त की ऐसे सिद्धों की आराधना में 256 अर्घ्य चढ़ाए गए। बुधवार को सातवें दिन 512 अर्घ्य चढ़ाते हुए पंच परमेष्ठी की वृहद आराधना की जाएगी ।
चातुर्मास पत्रिका का होगा विमोचन
बड़ा जैन मंदिर कमेटी के मंत्री विनोद जैन (तार वाले) ने बताया कि बड़े जैन मंदिर में विराजमान मुनिश्री विलोकसागर महाराज एवं मुनिश्री विबोधसागर महाराज आज संकल्प पूर्वक चातुर्मास की स्थापना करेंगे।
इस अवसर पर वर्षायोग के मांगलिक कार्यक्रमों की पत्रिका “पावन मंगल वर्षायोग 2025” का विमोचन समाज के श्रावक श्रेष्ठियों द्वारा किया जायेगा

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