जाए तो “गु”अर्थात अंधकार “रु” अर्थात प्रकाश जो अधंकार से प्रकाश की ओर ने से नारायण तीतर से तीर्थंकर फर्श से अर्श की यात्रा करवा देवे वहीं सच्चा गुरु कहलाता है। पारस जैन पत्रकार ने बताया कि दो तरह से होते है एक लौकिक गुरु दूसरे आध्यात्मिक गुरु । मेने एक भजन लिखा है उसके बोल है। जिनके जीवन में गुरु नहीं उसका जीवन शुरू नहीं गुरु जीवन में यदि गुरु मिल जाए समझो जीवन सवर जाए गुरु ही जीवन में सद रहा दिखाए रे । जैसा ही कहा गया हैं कि गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाए बलीहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए इसका अर्थ होता है गुरु ही भगवान की पहचान करवा सकता है। गुरु पूर्णिमा का अर्थ है “गुरु का दिन” या “गुरु की पूर्णिमा”। यह दिन गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को दर्शाता है, जो भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। गुरु जीवन को जीवंत कर देते है जो ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान करते हैं गुरु इस दिन विशेष रूप से पूजनीय वंदनीय है । गुरु की महिमा गरिमा को शब्दों में नहीं लिखा जा सकता वो अटूट एवं विराट होती है यदि इस धरती के सभी जलाशय को स्याही बना ली जाए ओर जितने भी पेड़ पौधे वन उप वन है उनको कलम बना लिया जाए तब भी गुरु की महिमा गरिमा को नहीं लिख पाएंगे। माता पिता भी गुरु की हो श्रेणी में आते है। उनका उपकार कभी नहीं चुकाया जा सकता है। मानव इस संसार में चौरासी लाख गतियां ने भ्रमण करके दुर्लभ चिंता मणि रत्न के समान मानव पर्याय यह जीवन प्राप्त करता है।नियति ओर प्रकृति जो देती है वो हो लेती है। जैसी करनी वैसी भरनी वाला सिद्धांत लागू है। जीवन में सबसे बचा जा सकता है परंतु अपने कर्मों से नहीं। कर्म किसी को नहीं छोड़ता है। आपने जीवन ने एक सद गुरु आवश्य बनाए जो जीवन को जीवंत कर दे
जीवन को जीवंत कर देते है गुरु, गुरु के बिना जीवन शुरू नहीं होता शुरू
