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स्वाधीनता संग्राम के 745 हुतात्मा संतों को सिद्धपीठ श्री गंगादास जी की बड़ी शाला में पुष्पांजलि अर्पित

ग्वालियर। शहर के ऐतिहासिक एवं धार्मिक स्थल सिद्धपीठ श्री गंगा दास जी की बड़ी शाला में भारत के पहले स्वाधीनता संग्राम में बलिदान हुए संतों की पुण्य स्मृति में पिछले सात दिनों से आयोजित श्री मद भागवत कथा का संत समागम और भंडारे के साथ बुधवार को समापन हो गया। इस अवसर पर श्रद्धांजलि सभा में हुतात्मा संतों और स्वाधीनता संग्राम की अमर सेनानी रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धासुमन अर्पित किए गए।

गंगा दास की बड़ी शाला में आज संतों और रानी लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस के अवसर पर बड़ी संख्या में संत जनों एवं महंतों का आगमन हुआ । कार्यक्रम में महन्त स्वामी रामसेवक दास महाराज ने सभी हुतात्मा संतों को पुष्पांजलि अर्पित की और उन के जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम महारानी लक्ष्मीबाई ने शुरू किया था जिसमें गंगा दास जी की बड़ी शाला के 745 अपने प्राणों का बलिदान दिया।
संत महंतों ने मांग की है कि 1857 के हुतात्मा संतों का नाम देश के इतिहास में दर्ज किया जाए। कार्यक्रम में निर्मोही अखाड़े के राष्टीय अध्यक्ष श्री 1008 श्री मदन मोहन दास जी महारज (वृन्दावन ) मुख्य बक्ता के रूप में उपस्थित थे। उन्होंने गंगा दास जी की शाला के बारे उपस्थित जन समुदाय को बताया कि उस समय अंग्रेजों से रानी लक्ष्मी बाई की पार्थिव देह की रक्षा करते हुए शाला के 745 संतों ने अपने प्राणों की आहुति दी । महारानी लक्ष्मीबाई का अंतिम संस्कार पूज्य महाराजश्री गंगादास जी ने किया। ऐसे संतों के बलिदान को भुलाया जा रहा है उन्होंने सरकार से की कि संतों के इस बलिदान को इतिहास में जोड़ा जाए और शिक्षा पाठ्य क्रम में भी जोड़ा जाय ताकि आने बाली पीढ़ी ऐसे जान सके । आज इस इतिहास को पूरी तरह से भुलाया जा रहा है। पूर्व काल में यह मेला इसी स्थान के नाम से होता था लेकिन आज केवल पूरन बैराठी पीठाधीश्वर स्वामी रामसेवक दास महारज ही इस महोत्सव को मानते है अपितु हम सब को यह प्रयास करना चाहिए की संतो के इस बलिदान को इतिहास के माध्यम से सभी को जानकारी हो संतो की इस भूमि को कोटि सह प्रणाम है प्रणाम है । इस अवसर पर श्री कमला दास जी (ग्वालियर ), बालक दास जी (गोवर्धन ),भारत दास जी (अयोध्या )इसमें हरिद्वार, काशी,प्रयाग, उज्जैन से संतो,एवं महंतो द्वारा सभी शहीद संतो पुष्पांजलि अर्पित की।

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