ग्वालियर 03 जून 2025/ मेहनत-मजदूरी कर सुनीता व उनके पति ने जो भी कमाया वह सब बेटी की शादी पर खर्च हो गया। पति ड्रायवर का काम करते थे। उन्हीं की कमाई से जैसे-तैसे घर का खर्चा चलता था। बेटा पढ़ाई में होशियार था पर बड़े इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाने के लिये पैसे नहीं थे। इन विषम परिस्थितियों से उबारने में सुनीता की ग्रामीण आजीविका मिशन ने मदद की है। सुनीता का परिवार अब मजे में है। उनका बेटा प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी कर रहा है, खुद की किराने की दुकान है और पति पहले की तरह ट्रक चलाने का काम कर रहे हैं।
यह सच्ची कहानी है ग्वालियर जिले की डबरा तहसील के ग्राम समूदन निवासी श्रीमती सुनीता जाटव की। मध्यप्रदेश-डे राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ने के बाद सुनीता के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली सुनीता वर्तमान में ग्राम संगठन टेकनपुर की सचिव हैं और पूजा स्व-सहायता समूह से जुड़ी हैं। सुनीता गाँव की अन्य महिलाओं के लिये रोल मॉडल बन गई हैं। गाँव के लोग उन्हें अब लखपति दीदी कहकर बुलाते हैं।
सुनीता बताती हैं कि बेटी की शादी के बाद घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी। ऐसे में स्व-सहायता समूह ने मुझे सहारा दिया है। मैंने समूह से एक लाख रूपए ऋण लेकर किराने की दुकान खोली। आमदनी बढ़ी तो हौसला भी बढ़ गया। सुनीता कहती हैं किराने की दुकान से हुई कमाई से ब्याज सहित पूरा ऋण चुकता कर दिया। इसके बाद डेढ़ लाख रूपए का ऋण लेकर अपने कारोबार को और आगे बढ़ाया। आमदनी अच्छी हुई तो सपने भी पूरे होने लगे। अपने होनहार बेटे को ग्वालियर के प्रतिष्ठित आईटीएम कॉलेज में पढ़ाया। बीटेक करने के बाद बेटे की पूर्णिया बिहार में प्रतिष्ठित निजी कंपनी में नौकरी लग गई है। शुरूआत में उसे 30 हजार रूपए मासिक वेतन मिल रहा है। किराने की दुकान, बेटे का वेतन और पति की ड्रायवरी की नौकरी से कुल मिलाकर सुनीता के परिवार की कमाई साल में 6 लाख रूपए से अधिक होने लगी है।
सुनीता अपनी किराने की दुकान पर बैठकर तो पति हाईवे पर ट्रक चलाकर अपने घर को खुशियों से भर रहे हैं। वहीं उनका बेटा सम्मानजनक नौकरी कर परिवार का मान-सम्मान बढ़ा रहा है। राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन शुरू करने के लिये सरकार के प्रति धन्यवाद जाहिर करते हुए सुनीता कहती हैं कि यह मिशन सही मायने में महिला सशक्तिकरण की सफल गाथा लिख रहा है।
हितेन्द्र सिंह भदौरि