क्यों तुम खुल कर अपनी बात नहीं रखते ?
ज्यों-ज्यों समय बीत रहा तुम उदास रहते ?
किन उलझनों में उलझे हुए हो हरदम रहते ?
अपने लिये तुम खास इंतजाम क्यों नहीं करते ?
जो तकलीफ़ देते हैं उनसे दूर क्यों नहीं रहते ?
अपने एकांत का भरपूर आनंद क्यों नहीं लेते ?
कभी रस्मों-रिवाजों से बग़ावत क्यों नहीं करते ?
वो जो पीछे छुट गया है उसे छोड़ क्यों नहीं देते ?
किसी नये सफ़र की शुरुआत क्यों नहीं करते ?
जो मंजिलें न मिली, उनके रंज से क्यों नहीं निकलते ?
अपने भीतर के, अल्हड़पन को क्यों हो रोकते ?
जो होना है होगा ही, इसे स्वीकार कर खुश क्यों नहीं रहते ?
कल की चिंता में, तुम आज को जायर क्यों हो करते ?
अनुपमा पटवारी “ख्याति”
इंदौर, मध्यप्रदेश