
सुंदरता आभूषणों से नहीं, वीतरागता से आती है–भावलिंगी संत आचार्यश्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज
उत्तर प्रदेश बहलना – भारतीय वसुन्धरा सदा से ही निर्गन्ध दिगम्बर वीतरागी श्रमणों की पवित्र पदरज से पावन होती रही है। वर्तमान संत परम्परा के परम प्रवाहक “जीवन है पानी की बूंदे” महाकाव्य के मूल रचनाकार, “जिनागम पंथ जयवंत हो “के पवित्र नारे से जैन एकता का शंखनाद करने वाले, परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक…