बेटी बचाओ बेटी पढाओ मूक-बधिर हुआ महिला आयोग- प्रेरणा ज़ुबैरी

इटावा।आज सरकार जिस तरह से बेटी बचाओ,बेटी पढ़ाओ के नारों के साथ महिला शक्ति करण की बात करते हुए “मिशन शक्ति” जैसे महिला लुभावने कार्यक्रमों को चला कर महिलाओं के स्वावलंबन की बात कर रही है। उसको देख कर लगता है कि जैसे महिलाओं के स्तर में अमूल चूक सुधार हुए हैं। किंतु काग़ज़ों पर बातें करने एवं धरातल पर कार्य होने में ज़मीन आसमान का अंतर है। क्योंकि उसके बाद भी महिलाओं के प्रति लगातार बढ़ते आपराधिक मामले (विशेषतः बलात्कार से संबंधित) सरकार की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते हैं। यह बात कांग्रेस जिला प्रवक्ता प्रेरणा ज़ुबैरी ने अपना एक बयान जारी करते हुए कही। उन्होंने कहा कि हमारे देश में महिलाओं के प्रति अपराधों में दिनों दिन बढ़ोत्तरी के चलते आम महिलाओं का घर से निकलना दुश्वार होता जा रहा है। बात तब और गंभीर हो जाती है जब हमारे देश एवं प्रदेश का न्याय तंत्र महिलाओं की सुरक्षा एवं सम्मान से जुड़े निर्णयों में अपराधियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले निर्णय सुनाने लगते हैं। उस पर स्थित तब और चिंतनीय हो जाती है; जब महिलाओं के सम्मान, सुरक्षा, स्वावलंबन, सशक्तिकरण एवं अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध महिला आयोग मूक बधिर बनकर सिर्फ़ और सिर्फ़ तमाशा देखता रहता है।
अभी जब हाल ही में एक वृक्ष मां के नाम चलाए जा रहे वृहद वृक्षारोपण कार्यक्रम में अपनी सास सुमन गुप्ता (पत्नी मुलायम सिंह यादव) के नाम का सिंदूर का पौधा लगाकर बड़ी-बड़ी बातें करने वाली महिला आयोग की अध्यक्ष अपर्णा यादव ने एक भी बात महिलाओं से संबंधित नहीं कही। आखिर क्यों वह अपने ही पद के साथ न्याय नहीं कर पा रहीं? क्या कभी किसी ने अपर्णा यादव को महिलाओं के हित में खड़े होते हुए देखा है? क्या कभी महिलाओं के प्रति होने वाले अनगिनत अत्याचारों में के संदर्भ में बोलते सुना है? हाई कोर्ट इलाहाबाद के चीफ़ जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा द्वारा दिए गए महिलाओं के सम्मान एवं सुरक्षा से खिलवाड़ करते हुए घृणित निर्णय पर क्या कभी अपर्णा यादव को मुखर होते हुए देखा है? नहीं देखा होगा क्योंकि अपर्णा यादव महिलाओं के सम्मान के लिए नहीं बल्कि अपने सम्मान के लिए चिंतित हैं। उन्हें मालूम है कि यदि वे इन संवेदनशील मुद्दों पर तनिक भी मुखर हुई नहीं कि उनकी अध्यक्षता पर तलवार लटकने लगेगी।
सत्ता पक्ष के इशारों पर कार्य करने वाले यह आयोग कभी किसी वर्ग का भला नहीं कर सकते। महत्वाकांक्षी अपर्णा यादव में अपना सम्मान गिरवी रखकर यह सम्मानित पद पाया है। जिसे वह देश की इन आम महिलाओं के लिए कदापि ताक पर नहीं रख सकतीं। प्रेरणा ज़ुबैरी ने महिलाओं के प्रति बढ़ते भीषण आपराधिक मामलों की ओर इंगित करते हुए कहा कि N.C.R.B यानि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ विगत 5-6 वर्षों में 3,78,749 मामले केवल बलात्कार से संबंधित दर्ज़ किए गए हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह वह मामले हैं जो पुलिस रिकॉर्ड में पंजीकृत हैं। इसके विपरीत इससे तीन गुना मामले ऐसे हैं जो संज्ञान में ही नहीं आ पाते । चाइल्ड राइट्स एंड यू (C.R.Y.) के निदेशक शुभेंदु भट्टाचार्य के अनुसार एक सर्वे में पाया गया कि 40% महिलाएं शर्म की वजह से ऐसे मामले दर्ज़ नहीं करवाती। वहीं 38% मामलों में महिलाएं कानून और पुलिस पर विश्वास न होने की बात करती हैं। जबकि 34% महिलाएं सामाजिक बदनामी के चलते अपने केस रजिस्टर्ड नहीं करा पातीं। बरहाल आधी आबादी से जुड़े इन ज्वलंत मुद्दों पर महिला आयोग एवं महिला संगठनों की चुप्पी उन महिलाओं के प्रति उदासीनता को दर्शाते हुए सरकार के बड़े-बड़े दावों की पोल खोलती नज़र आती है। हाल ही में महाराष्ट्र के रतनबाई एस. दमानी विद्यालय में स्कूली छात्रों के साथ जो घिनौना कृत्य घटित हुआ वह किसी भी बेटी के माता-पिता को सन्न कर देने वाला है। विद्यालय की कक्षा 6 से लेकर कक्षा दसवीं तक की 125 छात्राओं के वस्त्र उतरवा दिए जाते हैं। वह भी वहां के पूरे स्टाफ, प्रिंसिपल एवं कर्मचारियों के सामने। और मामला क्या था कि; बाथरूम की दीवारों पर खून के निशान मिले थे इतना ही नहीं उन ख़ून के निशानों की वीडियो ग्राफी करने के साथ-साथ सभी छात्राओं के फिंगरप्रिंट की फॉरेंसिक जांच भी की जाती है। जिससे आहत छात्राओं की अभिभावकों ने विद्यालय प्रशासन के ख़िलाफ़ अपना आक्रोश व्यक्त किया है। किंतु सवाल यहां फिर वही खड़ा होता है कि कहां गया महिला आयोग? इतना कोई कैसे गिर सकता है ;कोई कैसे इतनी नीचता दिखा सकता है?उसके बाद भी उन पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं। ऐसे लोगों को कोई कड़ी सज़ाएं नहीं।महिलाओं को एक वोट बैंक भर समझने वाली सरकार आख़िर कब तक महिलाओं के आरोपियों को संरक्षित करती रहेगी? एक महिला होने के नाते मैं इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए सरकार से मांग करती हूं कि वह इस विद्यालय प्रशासन के ख़िलाफ़ कड़ी से कड़ी कानूनी कार्रवाई करते हुए उनको दंडित करें। और यदि ऐसा ना किया गया तो आने वाले समय में आधी आवादी अपने अधिकारों अपने सम्मान और सुरक्षा को लेकर सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलने को बाध्य होगी।

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