11 वीं जन्म जयन्ती के साथ मनाया 11 वां श्रुत सप्तमी महोत्सव
” परम् पूज्य वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री 108 विमलसागर जी महामुनिराज ” एक ऐसा नाम है जो २० वीं सदी में अद्वितीय संत के रूप में आना गया। पूज्य आचार्य प्रवर इकलौते” निमित्त ज्ञान शिरोमणि” संत हुये है। इस वर्ष 2025 में 13 सितम्बर शनिवार को “आश्विन कृष्ण सप्तमी जन्म तिथि के दिन सम्पूर्ण भारतवर्ष में गुरुवर की 111 वी जन्म जयन्ती महोत्सव पूर्वक मनायी गयी । जन्म जयन्ती की उत्तर प्रदेश की धर्मनगरी सहारनपुर में भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ससंघ (उ० पीछी) के सानिध्य में आन्चार्य गुरुवर की जन्म हर्षोल्लास पूर्वक मनायी गयी। इसी अवसर पर आचार्यश्री विमर्शसागर जी महामुनिराज द्वारा रचित जैन ग्रंथ “श्री योगसार प्राभृत” पर 1000 पृष्ठीय “श्री अप्योदया टीका ग्रंथ” व 11 वीं वर्षगांठ मनायी गयी। प्रातःकाल की बेला में गुरु पूजन कर जन्मोत्सव मनाया एवं माँ जिनवाणी की पूजन कर “श्रुत सप्तमी महापर्व मनाया। श्रद्धालु भक्तों ने एवं संघस्थ साधु वृन्दों ने बिनयांजलि समर्पित की। संध्याबेला में महाआरती कर गुरु गुणगान किया गया ।
भावलिंगी संत आचार्यश्री विमर्शसागर जी ने अपने दादागुरु वात्सल्य रत्नाकर आचार्य भगवन् श्री 108 विमलसागर जी महामुनिराज के चरणों में भाव विनयांजलि समर्पित करते हुये कहा जीव करे नित जन्म-मरण, मिले न जग में कहीं शरण।
विभल गुरु सम गुरु मिलें, विमल आचरण विमल शरखा । जन्मों- जन्मों के, हो हो २, दुःख नजर न आयें रे….. जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे
परम पूज्य निमित्तज्ञान शिरोमणि वात्सल्य रत्नाकर सन्मार्ग दिवाकर आचार्य गुरुवर श्री विमलसागर जी महामुनिराज जैसा कोई दूसरा संत नहीं हुआ, उन जैसे बस वे ही थे। वे संत इस घरा पर आये, अपना कल्याण किया और साथ ही लाखौं जीवों को सद्मार्ग पर लगाकर हमारे बीच से विदा हो गये। भले ही वे महासंत आज हमारे बीच नहीं है किन्तु आज भी वे जन-जन के हृदयों में वास कर रहे हैं। परम पूज्य गुरुवर की ऐसी महान साधना थी कि वे जिस भी मंत्र या किसी कार्य को हाथ में लेते थे वह मंत्र अथवा कार्य स्वतः ही उन्हें सिक हो आया करता था, वे रातों-रात मंत्र जाप द्वारा साधना करते तथा दिन में अनेकों तन दुःखी मन दुःखी, धन्दुःखी प्राणी उनके चरणों में आते, तब आगन्तुक दुखिया लोगों के लिए वे महामंत्र णमोकार की जाप दे देकर उनके दुःखों का निवारण कर दिया करते थे।परमपूज्य आचार्य गुरुवर ने सैकड़ों भव्यात्माओं को जिनदीक्षा प्रदान कर उनका मोक्षमार्ग प्रशस्त किया जा बनेकानेक तीर्थों का जीर्णीकार कराके एवं नव जिनालयों का निर्माण कराके जिनशासन को समृद्ध किया। ऐसे महान अलौकिक संत के चरणों की हम सब भाव वंदना करते हुए यही करते हैं कि हे गुरुवर। आप जैसी उत्कृष्ट साधना हमें भी प्राप्त हो। परमपूज्य इतिहास में पहली बार लिखी गयी संस्कृत ग्रंथ पर प्राकृत टीका भावलिंगी संत आचार्य श्री द्वारा रचित “श्री अप्पोदया टीका ग्रंथ” के बारे में संघस्य मुनिश्री विचिन्त्य सागर जी ने बताया – 2500 वर्षों के इतिहास में यह प्रथम अवसर होगा जब किन्हीं आचार्य के द्वारा संस्कृत ग्रंथ पर प्राकृत भाषा में टीका ग्रंथ का निर्माण किया गया। फापूज्य आचार्य गुरुबर की यह टीका महान आध्यात्मिक ग्रंथों के लिए प्रवेश द्वार है। निश्चित ही भव्य जीव “श्री अप्पोरया ग्रंथ का स्वाध्याय कर अपना कल्याण मार्ग प्रशस्त करेंगे ।
सदियों तक हम सबकी श्रद्धा के बीच रहेंगे आचार्य गुरुवर विमलसागर जी महामुनिराज – भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्श सागर जी मुनिराज
