मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन धर्म में दसलक्षण पर्व का अत्यधिक महत्व है । यह जैन धर्मांवलियों का एक विशेष त्योहार है, जिसे सभी श्रावक अत्यंत ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाते है । दशलक्षण महापर्व वीतरागता का पोषक, त्याग, तपस्या, संयम एवं साधना का पर्व है। जैन धर्म में दसलक्षण धर्म आत्मा के दस सार्वभौमिक गुण हैं जो व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक हैं । “दशलक्षण” का अर्थ है जैन धर्म के दस प्रमुख धर्म या गुण, जो आत्म-शुद्धि और आध्यात्मिक विकास पर ज़ोर देते हैं। इन लक्षणों का पालन करने से व्यक्तियों को सांसारिक दुखों से मुक्ति मिलती है और आत्मा की शुद्धि होती है। प्रत्येक श्रावक को इन पर्वों में अपनी सामर्थ्य के अनुसार व्रत, पूजन, भक्ति, जिनेंद्र प्रभु की आराधना करते हुए संयम की साधना करना चाहिए । दस धर्मों का सार है, मन की निर्मलता । मन के विकारों को नष्ट करना, जाने अनजाने में हुए पापों का क्षय करना, मन की मलिनता को दूर करने करते हुए मन को निर्मलता प्रदान करने का नाम ही पर्यूषण पर्व है । यह पर्व मन को निर्मल तो करता ही है साथ ही हमारे अंदर सादगी, संयम, जीव दया, अहिंसा, परोपकार का बीजारोपण करते हुए संयम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा प्रदान करता है । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन संत मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने बड़े जैन मंदिर में अपने भक्तों को उद्वोधन देते हुए व्यक्त किए ।
पर्युषण पर्व में दस दिन के कार्यक्रम
पर्युषण पर्व में दस दिन तक जिनेंद्र प्रभु की भक्ति की जाएगी । प्रतिदिन प्रातः 06.00 बजे से जिनेंद्र प्रभु का जलाभिषेक एवं शांतिधारा, प्रातः 07.00 बजे से नित्य नियम पूजन एवं विशेष पूजन, 07.30 बजे से दसलक्षण विधान, प्रातः 09.00 बजे से युगल मुनिराजों के प्रवचन, प्रातः 10.00 बजे मुनिराजों की आहारचर्या, दोपहर 03.00 बजे से सिद्धांत ग्रन्थ तत्त्वार्थ सूत्र का वाचन (प्रतिक्रमण), शाम 06.30 बजे मुनिश्री द्वारा शंका समाधान, 07.30 बजे संगीतमय महाआरती, रात्रि 08.00 बजे विद्वत नीरज शास्त्री द्वारा शास्त्र सभा, रात्रि 08.40 से सांस्कृतिक कार्यक्रम होगें ।
धूप दशमी एवं अन्नत चतुर्दशी का विशेष महत्व
दस दिनों के इस पर्व में धूप दशमी एवं अन्नत चतुर्दशी का विशेष महत्व होता है । धूप दशमी को सुगंध दशमी भी कहा जाता है। इस दिन सभी जैन साधर्मी बंधु सपरिवार नगर के सभी जिनालयों में दर्शनार्थ जाते है और अग्नि में सुगंधित धूप समर्पित कर अष्टकर्मों के विनाश के लिए प्रार्थना करते हैं । धूप दशमी पर महिलाएं अपने सुहाग की मंगल कामना के साथ अपने पति की सुख शांति समृद्धि हेतु प्रार्थना करती हैं।
पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन अनन्त चतुर्थी को सभी जैन सपरिवार प्रभु की विशेष आराधना करते हैं। इस दिन शायद ही कोई जैन ऐसा होगा जो अभिषेक, पूजन और व्रत नहीं करता होगा । इस दिन जैन परिवार का प्रत्येक सदस्य अपनी समर्थ्यानुसार श्री जिनेंद्र प्रभु की आराधना करते हुए मोक्षलक्ष्मी की कामना करता है । शाम को सभी जिनालयों में श्री जिनेंद्र प्रभु के जलाअभिषेक का आयोजन होता है ।
क्षमावाणी पर्व पर होगी क्षमा याचना
पर्यूषण पर्व के समापन पर प्रतिवर्ष क्षमावाणी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन जैन धर्म का पालन करने वाले सभी बंधु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, जाने अनजाने में हुई गलतियों के लिए एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं। क्षमा याचना करते समय छोटे बड़े का कोई भेद नहीं होता है। गलती तो किसी से भी हो सकती है। यही कारण है कि सास बहू, पिता पुत्र, बच्चे बुजुर्ग सभी वर्ष भर में एक दूसरे से हुईं गलतियों के लिए क्षमा याचना करते हैं और स्वयं भी सामने वाले को क्षमा करते हैं।
क्षमावाणी हमें झुकने की प्रेरणा देती है। दसलक्षण पर्व हमें यही सीख देता है कि क्षमावाणी के दिन हमें अपने जीवन से सभी तरह के बैर भाव-विरोध को मिटाकर प्रत्येक व्यक्ति से क्षमा मांगनी चाहिए और हम दूसरों को भी क्षमा कर सकें यही भाव मन में रखना चाहिए। यही क्षमावाणी पर्व का सार है।
जैन दर्शन में दया, करुणा एवं क्षमा का विशेष महत्व है ।
प्रतिवर्ष पर्यूषण पर्व के समापन पर क्षमावाणी का पर्व मनाया जाता है । इस वर्ष 08 सितम्बर को क्षमावाणी मनाई जाएगी । केवल जैन धर्म में ही नहीं बल्कि सभी धर्मों में दया, करुणा एवं क्षमा को महत्व दिया जाता है ।
मन की मलिनता को निर्मल करते हैं पर्यूषण पर्व -मुनिश्री विबोधसागर
