33 पीछी धारी दिगम्बर साधु-साध्वी के साथ पधारे आचार्यश्री विमर्श सागर जी महामुनिराज
खतौली धर्मनगरी की धश हुई पावन – पवित्र । कण-कण हुआ गुरु भक्ति में सराबोर । आबाल-वृद्ध समुदाय में एकत्रित होकर 12 जून की प्रातः बेला में पहुंच गया खतौली से से सलावा अतिशय क्षेत्र । सैकड़ों की संख्या में भक्तसमूह के साथ “परम पूज्य ‘जीवन “जीवन है पानी की बूंदे” महाकाव्य के मूल रचियता संघ शिरोमणि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ” अपने चतुर्विध संघ की विशालता लिए हुए धर्मनगरी खतौली में पधारे। ज्ञात हो, पूज्य आचार्य श्री सत्संघ सन् 2025 के मंगल चातुर्मास हेतु “धर्मनगरी सहारनपुर की ओर बढ़ रहे हैं।
12 जून को खतौली नगर का अतिशय पुण्य जागा, जो आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज संसंध खतौली में पधारे। मंगल पदार्पण के पश्चात् उपस्थित विशाल जनसमुदाय के मध्य आचार्य श्री ने अपने मंगल प्रवचनों में कहा हमें यह मनुष्य जीवन मिला है मात्र भगवान
बनने के लिए। इस संसारमें जीव नामक पदार्थ की कभी भी उत्पत्ति नहीं होती, जीव नामक पदार्थ अक्षय अनंत की संख्या में इस लोक में अनादि से विद्यमान हैं। हम और तुम भी अनादि काल से इसी लोक में स्थित रहे हैं। अनंत काल तो हम सभी ने निगोद की पर्याय में बिता दिया। वहाँ एकेन्द्रिय की वृक्ष आदि की पर्याय में कर्म फल चेतना को ही भोगते हुए अनंत काल बिता दिया। वहाँ क्या गर्मी, क्या सर्दी और क्या बरसात ? सबकुछ मात्र सहा ही सहा है, किसी का भी प्रतिकार करने की शक्ति आप में नहीं थी। आज यहाँ आपने संनी पंचेन्द्रिय की पर्याय प्राप्त कर ली है तो यहाँ आत्म हित के लिए किंचित् भी प्रतिकूलता सहज भाव से सहन नहीं कर माते, घोड़ी सी गर्मी अथवा सर्दी में कितने विचलित – व्याकुलन्चित्त हो जाते हो। जब यह जीव तुच्छ हीन पर्यायों में दुःखों को भोगता है तो भावना करता हैं, मुझे भी मनुष्य पर्याय प्राप्त हो और मैं भी भगवान बनने के मार्ग पर अग्रसर हो सकें। जन्मों जन्मों के संचित पुण्यों से मनुष्य जन्म प्राप्त हो गया । आज आप अपने पूर्व जन्मों के दुःखों को भूल गये और वर्तमान में प्राप्त भोगों को प्राप्तकर मदहोश हो जाते हो और धर्म को तथा भगवान
भूल जाते हो । यदि प्रत्येक मानव यह प्रतिदिन स्मरण करे कि मुझे यह जन्म एक मात्र “भगवान की खोज करने के लिए मिला है।” तो आपके कदम कभी शराबखाने की ओर नहीं बढ़ सकते। आचार्य संघ के चरणों में खतौली समाज में निवेदन पर आन्चार्यश्री में 4-5 दिवस का मंगल झाशीवार खतौली समाज की प्रदान प्रदान किया
सदैव स्मरण रखें – “मुझे भगवान की खोज करना है”– भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी मुनिराज
