कर्मठता से बने कर्मयोगी
जीवन धारा प्रवाह चलता रहता है। समय बीतता जाता है, लेकिनf धारा प्रवाह जीवन में कुछ पल ऐसे होते हैं, जो समय के इतिहास में स्वर्णिम छाप छोड़ जाते हैं।
ऐसे ही एक व्यक्तित्व का नाम है ब्र. रवीन्द्र कुमार जी, जिन्होंने कभी भी किसी भी व्यक्ति को अपने द्वार से निराश नहीं लौटाया, हर व्यक्ति को साथ लेकर चलना एवं हर कार्य को विधिवत पूर्व निर्धारित योजना अनुसार करना ये विशेषता रही है, भाई जी की कार्यशैली अत्यन्त सरल है, जो कठिन से कठिन से कार्य को सरल बना देती है। जम्बूद्वीप पर आने वाला हर व्यक्ति सबसे पहले भाई जी एवं माताजी को पूछता है। उनसे मिलना चाहता है। क्यों? व्यवस्था पूरी उसे मिल रही है आवास एवं भोजन की, लेकिन बिना भाई जी से मिले हस्तिनापुर की यात्रा अधूरी रह जाती है। ऐसे लोकप्रिय व्यक्तित्व हैं हमारे-आपके भाई जी। कुछ सम्मान पाकर व्यक्ति सम्मानित हो जाता है, लेकिन किसी विशेष व्यक्ति से सम्मान स्वयं सम्मानित हो जाता है। ऐसे ब्र. रवीन्द्र कुमार जी को सम्मानित करके सम्मान भी गौरवान्वित हो जाता है।
पूज्य माताजी के अपूर्व स्नेह व प्रेम से सिंचित वह छोटा-सा बालक जो कभी त्याग व संयम का मतलब नहीं समझता था, लेकिन माताजी ने जिसकी प्रतिभा को पहचान कर अपनी चुम्बकीय शक्तियों के द्वारा संसाररूपी सागर से खींचकर तराश कर ऐसा व्यक्तित्व प्रदान किया शायद पूरी जैन समाज के अंदर भाई जी जैसा कर्मठ कर्मयोगी कोई हो। जिन्होंने कार्य को ही अपनी दिन चर्या बना डाला हो। बड़े-बड़े इंजीनियर नक्शा बनाकर उसकी लागत का अनुमान लगाते हैं लेकिन भाई जी तो बिना नक्शे के ही लागत निकाल लेते हैं।
आज दिगम्बर जैन समाज के अंदर जो भी प्रोजेक्ट बनता है, जो सबन पहले परामर्श करके कमेटी माता जी के पास आती है, क्योंकि माताजी के प्रोजेक्ट कभी अधूरे नहीं रहते हैं। उसका कारण भाई जी हैं, जो हर कार्य क पूरी मेहनत और लगन से पूर्ण करते हैं, पूर्णता के साथ उसको आगे चलान की व्यवस्था भी करते हैं। उसके रूप को कैसे संवारा जा सके, ये सोचते हैं कहने का तात्पर्य हर प्रोजेक्ट के साथ भाई जी की दूरदर्शिता जुड़ी रहती है
मैंने भाई जी की हर कार्य करने की शैली को बहुत निकट से देखा है बचपन से ही स्नेह एवं प्यार पाया है। माताजी हमेशा से अपने प्रवचन में कहा करती है कि भगवान महावीर कल्पवृक्ष रूप सबसे पहले यहाँ पर विराजमान हुए उसके पश्चात् शेष रचनाएँ बनती रहीं लेकिन मैं सोचता हूँ कि यदि इस संस्था का कल्पवृक्ष कोई है, तो भाई जी हैं। क्योंकि भाई जी के पास चाहे कोई भी आये, कभी भी निराश एवं खाली हाथ नहीं जाता है।
समय के साथ-साथ मामा जी कब भाई जी हो गये व भाई जी से कब स्वामी जी हो गये, पता ही नहीं चला, लेकिन इस बदलते हुए स्वरूप के साथ पीठाधीश पद पर आसीन हो गये, वेश के साथ परिवेश और योग्यता भी दिन- दूनी रात चौगुनी वृद्धिंगत हो रही है। अभी वर्तमान में आप सभी ने मांगीतुंगी में महापंचकल्याणक का नजारा देखा, जिसमें सम्पूर्ण देश के जैन समाज ने दांतों तले अंगुली दबा ली। जंगल में मंगल जैसा दृश्य था। अत्यन्त ही प्रभावनापूर्वक महापंचकल्याणक सम्पन्न हुआ, जिसमें श्री अमित शाह (गृह मंत्री-भारत सरकार) पधारे एवं उस पंचकल्याणक के दृश्य को देखते रह गये। महाराष्ट्र सरकार के पूर्व मुख्यमत्रा माननाय श्री देवेन्द्र जी फडणवीस ने अत्याधिक प्रशंसा करते हुए अनेक प्रकार से मांगीतुंगी को विकसित करने के लिए संकल्प लिया एवं स्वामीजी का आभार व्यक्त किया कि उन्होंने महाराष्ट्र को एक सांस्कृतिक विरासत प्रदान की। अभी कुछ समय पूर्व ही देश के महामहिम राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी कोविन्द पूज्य माताजी के जन्मदिवस पर आयोजित विश्वशांति अहिंसा सम्मेलन में भाग लेने के लिए पहुँचे एवं स्वयं स्वामीजी के कंधे पर हाथ रखकर कहने लग गये, कि वाकई आपने कमाल कर दिया है। एकदम नवीन नगरी जैसी बसा दी है। यह प्रतिमा देश एवं विदेश में विश्वशांति का संदेश सदैव प्रसारित करती रहेगी। माननीय राष्ट्रपति जी ने हैलीकाप्टर से प्रतिमा के दर्शन किए एवं राष्ट्रपति भवन से उस प्रतिमा का फोटो ट्विटर पर दिया गया। अनेक संस्थाओं का मैनेजमेंट, उनकी कार्यप्रणाली, सुव्यवस्थित आवास एवं भोजन की व्यवस्था देखकर लोग बिना तारीफ के नहीं रह पाते हैं। अनेक संस्थाओं ने अनेक उपाधियों से अलंकृत करके अपने आपको गौरवान्वित किया है।
इसी क्रम में राजधानी दिल्ली के दिल कनॉट पैलेस में चक्रवर्ती भरत ज्ञानस्थली तीर्थ का निर्माण किया एवं यहॉं पर आपकी देखरेख में भगवान भरत स्वामी की 31 फुट उत्तुंग प्रतिका विराजमान की गई एवं उसका अद्भुत पंचकल्याणक सम्पन्न किया गया। पूज्य माताजी के दिल्ली प्रवास के मध्य अनेक राजनेताओं का आगमन हुआ एवं सबसे बड़ी उपलब्धि पूज्य ज्ञानमती माताजी का आपके निर्देशन में राष्ट्रपति भवन में आपका निमंत्रण स्वयं राष्ट्रपति जी के द्वारा हुआ। राष्ट्रपति भवन के इतिहास में यह पहलीवार हुआ कि किसी जैन संत का आगमन राष्टपति भवन में हुआ। सभी प्रोटोकॉल को तोड़कर स्वयं राष्ट्रपति रामनाथ कोविंदजी ने माताजी की आगवानी की एवं सभा का आयोजन किया यह भी आपके जीवन में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है। इसी श्रृखंला में पुनः आपके कुशल निर्देशन में अयोध्या तीर्थ का विकास चल रहा है। जिसमें अनेक उपलब्धियॉ हो रहीं हैं। मई 2023 में अंतर्राष्ट्रीय पंचकल्याणक का आयोजन किया गया। जिसमें भगवान भरत स्वामी की 31 फुट उॅंची प्रतिमा विराजमान की गई एवं सारे देश से लगभग 4000-4500 लोगों की उपस्थिति में विशाल कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री श्री एकनाथ सिंदे जी का आगमन हुआ एवं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी का आगमन हुआ एवं पूर्व राष्ट्रपति श्री रामनाथ जी कोविंद लगभग 100 लोगों के साथ अयोध्या पधारे एवं जैन मंदिर दो दिवसीय प्रवास करके सुखद अनुभूति की यह सब आपकी कार्यकुशलता का परिचायक है। ऐसे कर्मठ व्यक्तित्व का जन्मदिवस हम सभी श्रुतपंचमी महापर्व 31मई ज्ञान के इस महान पर्व के साथ मना रहे हैं।
हम सभी जम्बूद्वीप संस्थान के पीठाधीश को अनेक शुभकामनाओं के साथ दीर्घ जीवन, स्वस्थ निरोगी होने की कामना करते हैं एवं चरणों में विनयावनत प्रणात करते हैं।
बंधुओं! ऐसे है हमारे स्वामी जी, जिनके लिए शब्द कम पड़ जाते हैं।
इन्हीं शब्दों के साथ मैं दो पंक्तियों के साथ स्वामी जी के चरणों में अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूँ-
ज्ञानमती माता के शिष्यों की प्रतिभा है निराली।
जिनने सारे देश में देखो धर्मध्वजा फहरा दी।।
बोलो रवीन्द्रकीर्ति जी की जय, बोलो स्वामी जी की जय।
कल्प वृक्ष रूप हैं स्वामी रविन्द्रकीर्ति जी
