बेटी के रूप में माँ को समर्पित कविता –
एक अल्हड़ सी, नाजुक सी,प्यारी सी गुड़िया
जिसको ऊँगली पकड़कर चलना सिखाया था
आज हर समय वो मेरा हाथ थामे रहती है l
बिना बोले ही हर बात जान लेती है l
जानती है कि
उसकी एक मुस्कान से दिन बन जाता है मेरा
सो मेरे साथ हँसने, बतियाने वक्त निकाल ही लेती है
कभी जिसकी चोटी बनाकर स्कूल भेजती थी
आज वह मेरे बाल संवारती है
क्या पहनना, क्या खाना, हर बात यूँ बतलाना
जैसे मेरी ही माँ बन गयी हो वो
सच ही तो कहते है लोग
कि माँ को भी माँ की जरूरत होती है
सो भगवान बेटी को भेज देते है माँ के पास
देख उसे यकीं होता
कि कैसे एक गुड़िया बेटी से सखी और सखी से माँ जैसी बन गयी
सच में एक नन्ही परी
नव विस्तार बन गयी…
नव विस्तार बन गयी…
🖋एडवोकेट सारिका जैन (शास्त्री)