मुजफ्फरनगर- जीवन में भगवान की जरूरत, आवश्यकता और महता क्या है? हम जानते हैं हमारे जीवन में सांसारिक प्रदायों की महत्ता क्या है। हम जानते हैं कि हमारे जीवन में धन की भोजन की, पिता-माला- भाई आदि रिश्तों की महत्ता क्या है। हमें जीवन में धन की महत्ता आती है इसीलिए आप धन कमाने के लिए जो कुछ बन पड़ता है वह आप सब कुछ करते हैं। आप अपने जीवन में जो कुछ भी कर रहे हो नह सब किसी न किसी प्रयोजन से ही कर रहे हो। जरा विचार करना आप सब धर्म कार्य करते हो, पूजा-पाठ विधान करने हो, क्या आपको ज्ञात है कि हम सब यह धर्म कार्य क्यों करते हैं? यदि आपको धर्मकार्य का प्रयोजन स्थाल में नहीं है तो आपको अपने परिश्रम का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा । ध्यान रखो भगवान जैसा रूप एवं स्वरूप पाने के लिए हमें भगवान की जरूरत है, आवश्यकता है। स्वयं के आत्मा को परमात्मा बनाने के लिए हम धर्म अनुयान करते हैं। ऐसा मांगलिक
उद्बोधन मुजफ्फरनगर के कल्पतीर्थ मण्डपम् में 35 पीछी धारी संयमियों के साथ अपना सानिध्य प्रदान कर रहे भावलिंगी संत आचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुभिराज ने दिया।bआचार्य जी ने अपने सुप्रसिद्ध महाकाव्य “जीवन है पानी की बूंद में नवीन
पंक्तियां जोड़ते हुये कहा
मंदिर में भगवान मिलें, अंदर में भगवान मिलें ।
भगवत्ता की सत्ता से सहज ज्ञान की कली खिले ।
आतम ज्ञानी ही, हो-हो-२, ज्ञानी कहलाये रे ।॥
जीवन है पानी की बूंदे, कब मिट जाये रे ।।
आचार्य श्री ने वर्तमान मावन जीवन को सद्बोध देते हुए कहा- आज व्यक्ति जिस परिवार में रहकर अपनों से राग करता है उसी परिवार में यदि किसी सदमा से अपने स्वार्य की पूर्ति नहीं होती दिखती है तो केले के छिलके की तरह उसे अपने रास्ते से अलग कर देता है। आचार्य श्री ने कहा ” आदमी जीवन भर अपने चेहरे बदलता रहता है, काश। आदमी एक बार अपना चरित्र बदल दे तो वह जीवन प्राप्त होगा जो शाश्वत और अविनाशी होगा।”
मुजफ्फरनगर के इतिहास में प्रथम बार हुयी है 24 समवशरणों की भव्य आकर्षक रचना । इतिहास में प्रथम बार मुजफ्फरनगर की पावन धरा पर 35 पीछी धारी संयमियों के साथ पदार्पण हुआ है भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज के चतुर्विध संघ का। मुजफ्फरनगर की नईमण्डी अभी बना हुआ है ‘अद्भुत तीर्थ क्षेत्र
चेहरे नहीं, चरित्र बदलने से बन जाता है आत्मा-परमात्मा- भावलिगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज

