द्रव्य पूजा की खींचतान में भावपूजा नष्ट हो रही है जो जैन समाज के विखण्डन में मूल कारण है। – भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज

अप्पोदया प्राकृत टीका पर संपन्न हुयी त्रिदिवसीय राष्ट्रीय विद्वत् संगोष्ठी । परमपूज्य भावलिंगी संत आदर्श श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज द्वारा “श्री योगसार प्राभृत” संस्कृत ग्रंथ पर 1000 पृष्ठीय प्राकृत टीका का सृजन किया गया है जो “अयोध्या ” नामक ग्रंथ के रूप में जन-जन के कल्याण में निमित्त बन रही है। 26-27-28 सितम्बर में विद्वानों की नगरी सहारनपुर में देश के मूर्धन्य मनीषी विद्वानों ने स्वयं टीकाकता आचार्य संघ के चरणों में बैठकर अप्पोट्या टीका के विभिन्न विषयों और पहलुओं पर विचार-विमर्श किया । अप्पोदया टीका संगोष्ठी मुख्य निदेशक सर्वाध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत रहे। संयोजक पं. विनोद कुमार जैन रजवास रहे। साथ ही प्रो. श्रीयांस जैन जयपुर, प्रो. नलिन के. शास्त्री दिल्ली, डॉ. राजकुमार उपाध्ये दिनी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डॉ. आशीष जैन, डॉ. सुनील जैन संचय, डॉ. बाहुबली जैन रजवाँस, डॉ. ज्योति बाबु उदयपुर, डॉ० आशीष जैन बम्हौरी आदि अनेक विद्वानों के साथ स्थानीय विद्वानों ने भी ज्ञान के महायज्ञ में अपनी आलेखों की प्रस्तुति की विद्वान बोले – भगवान महावीर स्वामी के बाद हमने संस्कृत ग्रंथों पर संस्कृत टीकायें देखी हैं, हमने प्राकृत ग्रंथों पर संस्कृत टीकायें बहुत देखी है किन्तु यह पहला अवसर है जब किसी जैनाचार्य के द्वारा संस्कृत ग्रंथ पर प्राकृत भाषा में 1000 पृष्ठीय प्राकृत टीका का लेखन किया गया हो और इस महनीय श्रुत संवर्धन को अंजाम देने वाले हैं हम सबके आदर्श भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज । विद्वत् वर डॉ. राजकुमार उपाध्ये दिल्ली ने स्वयं आगे होकर कहा पूज्यश्री द्वारा रचित यह अप्पोदया टीका सामान्य नहीं है, यह मात्र जैन समाज तक ही सीमित न रहे, यह जन-जन तक पहुंचनी चाहिए, यह जन-जन के हितार्थ विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में शामिल होनी चाहिए और ऐसा मैं कर सकूंगा, मुझे विश्वास है। अप्योदया टीका से प्रभावित होकर विद्वानों ने कहा- पूज्यश्री द्वारा
सृजित इस ग्रंथ में बहुतायत शोध के विषय हैं जिन पर आगामी समय में बड़ी श्रृंखला में विद्वत्‌वर्ग के शोधकार्य (P.H.D.) हम सबके समक्ष उपस्थित होंगे। वर्तमान में डॉ. शैलेन्द्र शास्त्री भेलसी द्वारा (P.H.D.) सम्पन्नता की ओर है जो जल्द ही हम सबके समक्ष उपस्थित होगी । आचार्य श्री की संघस्थ आर्यिका श्री विमर्शिता श्री माताजी द्वारा किया
गया विनय भरा मंगलात्चरण, जिसे सुनकर डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत अभी दीक्षा को एक वर्ष भी पूर्ण नहीं हुआ और पूज्य माताजी की एक प्रस्तुति ने ही यह बतला दिया कि वे भविष्य में जैन धर्म की महान ना करेंगी। इन सभी उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं। ने कहा
रयणोदय भाग-3 का किया गया भव्य विमोचन
राजधानी दिल्ली कृष्णानगर की महिला जैन समाज के सौजन्य से प्रकाशित कराया गया “रयणोदय ग्रंथ” का आगत सम्पूर्ण विद्वानों द्वारा भव्य विमोचन किया गया। ग्रंथ के सम्पादक डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत ने कहा -श्री रयणसार ग्रंथ पर आचार्य श्री की यह प्रवचन वृत्ति जन सामान्य के के कल्याण में निमित्त बन रही है।
विद्वत् वर्ग को आचार्य श्री ने सम्बोधित करते हुए कहा आज आत्मोन्नति के उपाय रूप में संगोष्ठी जगह-जगह आयोजित
की जा रही हैं। इसके साथ आज समाजोन्नति पर भी विचार करने की महती आवश्यकता है। आज मंदिरों में द्रव्य पूजा को मुख्य करके समाज में विखण्डन देखा जा रहा है, आज आवश्यकता है कि द्रव्य पूजा को गौण करके अर्थात जिसकी जैसी पद्धति है वह उसे करने दें और भाव पूजा को मुख्यता प्रदान करें ताकि समाज में एकता, सौहाद्र का वातावरण निर्मित हो सके । द्रव्यपूजा में खींचतान के कारण आज जो मुख्य है अर्थात अंतरंग भाव पूजा नष्ट होती जा रही है, जहाँ भावपूजा खण्डित हो गयी वहाँ आपकी द्रव्य पूजा आपको क्या फूल ” आज द्रव्य पूजा को प्रदान करेगी । इसीलिए मैं कहता हूँ गौण करके हमें भाव पूजा अर्थात भाव शुद्धि को ही महत्वता देनी होगी “” आज जैन समाज की हानि का मुख्य कारण है “विखण्डन” । विखण्डन में हमें भाव पूजा ही बचाने में समर्थ है

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