भाषा और संस्कृति की गुलामी से मुक्त होना ही असली स्वतंत्रता है। कई मायनों में भाषा और संस्कृति की गुलामी राजनैतिक गुलामी से भी अधिक खतरनाक है। हिंदी एक ऐसी भाषा है जिसके समर्थन में कई अहिंदी भाषी विद्वानों ने भी उसका समर्थन किया है। महात्मा गांधी, टेगौर, लोकमान्य तिलक, सुभाषचंन्द्र बोस सभी ने हिंदी के
पक्ष में अपना मत प्रकट किया है। यह बात वाणिज्य एवं व्यवसाय अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो.एस.के. सिंह ने हिंदी पखवाड़े के अंतर्गत विभाग में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कही। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. सी.वी रमन कहते थे कि यदि भारत में विज्ञान मातृभाषा के जरिये पढा़या गया होता तो
आज भारत दुनिया के अग्रणी देशों में होता। वाणिज्य संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो. राजेन्द्र खटीक ने चीन, जापान जैसे देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होने अपनी भाषा नहीं छोड़ी इसलिए आज विकसित हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी देश की भाषा मिटा दो उसकी संस्कृति अपने आप नष्ट हो जायेगी। मुख्य अतिथि श्री ओ.पी. जैन अधीक्षक, जी.वि.वि. ने अपने उद्बोधन में कहा कि मैंने जब भी किसी शिक्षक को फोन लगाया और यदि बात नहीं हो पायी तो उन शिक्षक ने फोन लगाकर मुझसे बात की। उन्होंने वर्तमान कुलगुरू के निर्णयन क्षमता की तारीफ करते हुए कहा कि उनके पास जाने वाला हर कागज तुरंत वापिस आता है। उन्होने अपने बच्चों का उदाहरण देते हुए कहा कि मेरे बच्चों ने इसी विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की है एंव वह बहुत अच्छी जगह नौकरी कर रहे हैं। यदि आप मेहनत करेंगे तो आप भी लाभान्वित होंगे।
कार्यक्रम में सुलेख लेखन कार्यशाला का भी आयोजन किया गया इसके पूर्व बेहद ईमानदार, कर्मठ एवं सहज व्यक्तित्व के धनी श्री ओ.पी. जैन का शॉल, श्रीफल एवं पुष्पहार पहनाकर सम्मान किया गया। कार्यक्रम में डॉ. रीना भार्गव, डॉ0 सुनीता चौहान, डॉ0 मौनिका तलरेजा, डॉ0 उर्मिला यादव, डॉ0 मोनिका मोर्य, रश्मि शर्मा,
संकल्प , डॉ0 रेनू पारस, श्री अविनाश गुर्जर, डॉ0 दीपक वर्मा, श्रीमती नीलम खत्री, श्री बृजेश राणा, एंव बड़ी संख्या में छात्र छात्राऐं उपस्थित थे।
राजनैतिक गुलामी से भी खतरनाक है भाषा और संस्कृति की गुलामी
