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तेजी से घूमता राजनीति का सुदर्शन चक्र

राकेश अचल  (achalrakesh1959@gmail.com )

आप किसी और मुद्दे पर जब तक सोच-विचार करते हैं तब तक राजनीति का सुदर्शन चक्र इतनी तेजी से घूमता है कि आपको भी झकमारकर राजनीतिक घटनाक्रम पर होई बात करना पड़ती है। आप इस घटनाक्रम की अनदेखी करेंगे तो आपको आपका पाठक मूर्ख समझेगा। हालाँकि इस कीमत पर भी मै अक्सर जरूरी मुद्दों को ओझल नहीं होने देता। बात आज फिर मध्यप्रदेश की है।   मप्र विधानसभा चुनावों का कार्यक्रम अभी  औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुआ है और न ही राज्य में अभी आदर्श आचार संहिता लागू हुई है लेकिन भाजपा ने प्रत्याशियों की अपनी पहली सूची जारी कर सभी को चौंका दिया है।
मप्र में भाजपा दूध  से जली पार्टी है ,इसलिए इस बार छाछ भी फूंक-फूंककर पी रही है। भाजपा ने मप्र में तमाम रीति-रिवाजों को बलाये ताक रखकर अपने प्रत्याशियों की पहली सूची जिस जल्दबाजी में जारी की है उससे जाहिर है की 2023  के विधानसभा चुनाव में वो कोई गलती नहीं करना चाहती। जिन प्रत्याशियों के नाम घोषित किये गए हैं ,उनका चयन कब और कैसे हो गया ,ये पार्टी के दूसरे बड़े नेता अमितशाह जानते होंगे या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनके समकक्ष। जिला इकाइयों को शायद ही इसकी भनक हो,क्योंकि न कोई पैनल बने और न किसी कमेटी के जरिये प्रत्याशियों के चयन का नाटक किया गया।
भाजपा द्वारा घोषित प्रत्याशियों की सूची में सभी तरह के नाम है।  कुछ लोकप्रिय हैं ,तो कुछ नही।  कुछ बाहुबली हैं, तो कुछ नही।  कुछ के ऊपर आरएसएस का हाथ है तो कुछ पर नहीं। लेकिन प्रत्याशियों का चयन बड़ी ही सूझबूझ से किया गया है।इसमें वे ही नाम हैं जो भाजपा के पैमानों पर खरे उतरते हैं  या जीत की गारंटी देते हैं। कौन ,किसका समर्थक है ये खोजना कोई कठिन काम नहीं है।  क्योंकि अधिकाँश नाम जाने -पहचाने हैं। इस सूची में अधिकाँश सीटें वे हैं जिनपर भाजपा पिछले विधानसभा चुनावों में पराजय का समाना कर चुकी है। इस सूची  में अधिकाँश सीटें वे भी हैं जो अनुसूचित जाति या जन जातियों के लिए आरक्षित हैं। इस सूची में ऐसे भी नाम हैं जिनके माई-बाप भाजपा के असंतुष्ट नेताओं के रूप में भी जाने -पहचाने जाते हैं।
पार्टी नेतृत्व के इस फैसले से भाजपा का आम कार्यकर्ता भी भौंचक है। क्योंकि इस सूची के अचानक प्रकट होने से पहले तक अधिकांश सीटों से टिकिट पाने के लिए अभी जोड़तोड़ जारी थी। ये सूची एक तरफ सावधानी से बनाई गयी है दूसरी तरफ इसके साथ तमाम जोखिम भी बाबस्ता हैं। मसलन बहुत से प्रत्याशी ऐसे हैं जो काठ की हांडी साबित हो चुके हैं लेकिन उन्हें दोबारा चुनाव के चूल्हे पर चढ़ा दिया गया है। क्योंकि उनका कोई विकल्प पार्टी के पास नहीं था। एक उदाहरण ही इसके लिए पर्याप्त है। ये उदाहरण है शिवपुरी जिले की करेरा-पिछोर  सीट से चयनित भाजपा प्रत्याशी प्रीतम लोधी का। प्रीतम जननेता नहीं है।  उनकी विशेषता ये है कि  वे पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के समर्थक हैं और बाहुबली हैं। उन्हें भाजपा ने पिछले दिनों ब्रम्ह्मणों  के बारे में एक टिप्पणी करने पर पार्टी से निकाला था और बाद में वापस ले लिए था। प्रीतम भाजपा के अघोषित प्रचारक धीरेन्द्र शास्त्री से भी पंगा ले चुके हैं।
करेरा-पिछोर सीट से कांग्रेस के बाहुबली नेता केपी सिंह उर्फ़ कक्काजू 1993  से लगातार जीते आ रहे है।  वे इस सीट से 06  चुनाव जीत चुके हैं। 70  करोड़ रूपये से ज्यादा के आसामी केपी सिंह को हारने के लिए भाजपा ने तमाम कसबल लगा लिया है लेकिन बीते तीन दशक में भाजपा केपी सिंह को हरा नहीं पायी। केपी के खिलाफ  पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती अपने भाई भैया लाल लोधी तक को चुनाव लड़ा चुकी हैं लेकिन जातीय कार्ड यहां चला नहीं। इस बार लगता है कि भाजपा ने फिर से केपी को ये सीट उपहार में दे दी है।
उदाहरण कि लिए एक और आरक्षित सीट गोहद की है जिससे भाजपा ने पूर्व मंत्री लाल सिंह आर्य को अपना प्रत्याशी बनाया है ।  लालसिंह आर्य गोहद सीट से तीन बार चुने गए लेकिन पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने भाजपा से ये सीट जीती। भाजपा को लगता है कि  इस बार कांग्रेस को यहां से हराना आसान होगा ,क्योंकि कांग्रेस के मौजूदा विधायक स्थानीय जनता की नजरों से उतरे हुए हैं। लगभग इसी तरह का आशावाद हरेक सीट पर दिखाई देता है। भाजपा ने इस बार प्रत्याशी चयन में प्रत्याशियों की जीत की समभावना को सबसे ऊपर रखा ह।  उसके अतीत पर पार्टी हाईकमान ने खुद धुल डाल दी है। इस सूची में बहुत से प्रत्याशी ऐसे हैं जो हैं किसी और के समर्थक लेकिन उन्होंने औपचारिकता निभाते हुए स्थानीय छत्रपों से भी सहमति हासिल कर ली थी।
बहरहाल भाजपा ने विधानसभा चुनाव के रण में कांग्रेस के मुकाबले बढ़त बनाई है। पहले प्रत्याशियों के नाम जारी करने से भाजपा  को लाभ होगा या हानि ,इसका आकलन भाजपा किये बैठी है। मुमकिन है कि  एन वक्त पर इस सूची में फेर-बदल भी हो लेकिन इसकी कम ही गुंजाइश है ,क्योंकि ये सूची तमाम आगा-पीछा देखकर बनाई गयी है। पार्टी कार्यकर्ताओं के असनतोष ‘ के उफान से निबटने के लिए भी कमर  कसकर बैठी है। भाजपा की इस कार्रवाई से कांग्रेस में बैचेनी बढ़ेगी साथ ही प्रत्याशी चयन में सहूलियत भी होगी ,कांग्रेस अब भाजपा प्रत्याशियों के मुकाबले बेहतर चयन कर सकती है।
भाजपा के इस नए  प्रयोग से भाजपा के सामने असंतुष्टों से निबटने में भी सहूलियत मिल सकती है ।  पार्टी के जो भी असंतुष्ट  पार्टी निर्णय से असहमत होंगे वे या तो कांग्रेस या आप का दामन थाम लेंगे या फिर भाजपा हाईकमान उन्हें अच्छे दिनों का ख्वाब दिखाकर  मना लेगी । भाजपा ने यही प्रयोग सांकेतिक रूप से छत्तीसगढ़ में भी किया है। निजी तौर पर मुझे भाजपा की ये कार्रवाई पसंद है ,क्योंकि अब क्षेत्र की जनता को अपने प्रत्याशी को समझने और प्रत्याशी को मतदाताओं तक पहुँचने का पर्याप्त अवसर मिल सकेगा। अन्यथा प्रत्याशियों का चयन नाम वापसी के दिन तक करने के अनेक उदाहरण हमारे सामने हैं।
दरअसल मध्यप्रदेश में भाजपा उलझी हुई है ।  एक के बाद एक विवाद भाजपा के लिए चुनौती बनकर सामने एते रहे है।  कभी पटवारी परीक्षा में भ्र्ष्टाचार तो कभी ठेकों में पचास फीसदी  कमीशन का आरोप। कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के खिलाफ  इसी आरोप के चलते 41  जिलों में एफआईआर दर्ज कराकर भाजपा ने अपनी किरकिरी पहले ही करा ली है। भाजपा अपनी  गलती सुधारने के लिए ही रोज नए पैंतरे इस्तेमाल कर रही है ।  प्रत्याशियों का अप्रत्याशित  रूप से चयन भी इसी दिशा में एक कदम है।लाभ-हानि तो लगी ही रहती है। मौलिकता अपनी  कीमत वसूलती ही है।
भाजपा कि निशाने पर अबकी दलित और आदिवासी वोट बैंक है ।  इन समाजों को साधने कि लिए प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से लेकर मध्यप्रदेश की पूरी मेहनत कर रहे है।  इन दोनों ने मणिपुर संकट कि चलते संसद में विषम परिस्थितियों कि बावजूद मध्यप्रदेश पर काम करना बंद नहीं किया। पार्टी में जहाँ -जहाँ लीकेज नजर आयी वहां-वहां पैबंद भी लगा दिए। बाबा-बैरागियों की टीम भाजपा पहले से लगा चुकीय ह।  इन दिनों गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा कि विधानसभा क्षेत्र दतिया में पंडित प्रदीप मिश्रा का डेरा है ।  धीरेन्द्र शास्त्री पहले ही अपनी ड्यूटी पूरी कर चुके है। जो बचे होइन वे भी आने वाले दिनों में सामने आ जायेंगे। भाजपा की फ़िक्र  इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि कांग्रेस इस बार कांटे से काँटा निकालने कि लिए धर्म का इस्तेमाल कर रही है। कमलनाथ भी उन्हीं धीरेन्द्र शास्त्री को अपने क्षेत्र में ले जा चुके हैं।

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