आपका अभिमान बताता है, आप गुणवान नहीं हैं। – संध शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

सहारनपुर-संतों का सानिध्य अति दुर्लभ है, जहाँ एक-दो नहीं पूरे 30 पीछीधारी संतों का सानिध्य प्राप्त हो जाए उस नगर के नागरिकों के पुण्य की गणना नहीं की जा सकती। ऐसा ही सुखद संयोग धर्मनगरी सहारनपुर को प्राप्त हुआ है, परमपूज्य “जीवन है पानी की बूंद” महाकाव्य के मूल रचनाकार भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज ससंघ (30 पीछी) का ३० वाँ मंगलमय चातुर्मास सहारनपुर में धर्मप्रभावना के साथ हो रहा है। प्रातः 8 बजे परमपूज्य आचार्य भगवन् “श्री भक्तामर शिक्षण शिविर” में भगवान की भक्ति की मानव जीवन में क्या महत्वता है, इसका अत्यंत सरलता से बोध करा रहे हैं। श्री वीरोदय तीर्थ मण्डपम् में उपस्थित धर्मसभा को संबोधित करते हुये कहा मनुष्य अपने जीवन में पूर्व पुण्योदय से चंद उपलब्धियाँ क्या प्राप्त कर लेता है, उसे चार लोग सम्मान क्या देने लगे, मनुष्य अपने आपको सर्वोत्कृष्ट समझने लगता है, कहता है -“मेरा समाज में बड़ा नाम, है, सभी लोग मेरा सम्मान करते हैं, मुझे कम मत समझना “। ऐसे मूढ़ मनुष्य से मैं कहत हूँ – ” भो जीव ! कहाँ अपने अज्ञान की शेखी बघार रहा है, क्या तूने सर्वगुणो को धारण करने वाले जिनेन्द्र देव को नहीं देखा है।” निश्चित ही अपनी एक-दो खूबियों का अपने मुँह से बखान करने वाला वहीं हो सकता है जो अभी तक जिनेन्द्र भगवान की शरण में नहीं आया है। अनेकानेक गुणों के धारी मुनिगण-देवगण भी जिनेन्द्र भगवान जो सम्पूर्ण गुणधारी हैं उनके समक्ष स्तुति-भक्ति गान करते हैं। अपने गुणों का अभिमान वही कर सकता है जो अभी समीचीन गुणों को प्राप्त नहीं हुआ है।
“जीवन है पानी की बूंद” महाकाव्य में नवीन छंद जोड़ते हुए आचार्य श्री ने कहा- प्रभु गुणखान कहाते हैं, प्रभु गुणवान कहाते हैं। जो प्रभु भक्ति करते हैं, स्वयं प्रभु बन जाते हैं। प्रभु गुण की उपमा, हो-हो-2, कहीं नज़र न आये रे. जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे
लोक में प्रत्येक पदार्थ को उपमा दी जा सकती है किन्तु जो उपमातीत हैं, अनुपमेय हैं उन्हें कोई उपमा नहीं दी जा सकती। इस धरा पर सर्वोत्तम महिमा के धारी जिनेन्द्र भगवान हैं। जिनेन्द्र भगवान से अधिक गुणवान अन्य कोई धरा पर नहीं है जबकि उपमा सदैव कम गुवा वान को दी जाती है। अतः जिनेन्द्र भगवान केवल अपने ही समान है।

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