भक्ति करने वालों को मिलता है सुन्दर रूप – भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

सहारनपुर में बारिश हो रही थी किन्तु सहारनपुर के जैन बाग प्रांगण में “श्री वीरोदय तीर्थ मण्डपम्” में भक्ति का अमृत बरस रहा था। श्री भक्तामर । महिमा प्रशिक्षण शिविर ” में अनवरत धर्म-श्रद्धालु सीख रहे हैं श्री भक्तामर स्तोत्र का शुद्ध उच्चारण एवं भक्ति स्तोत्र की सर्वोत्कृष्ट महिमा सुनकर कर रहे है अपने मानव जीवन को धन्य-धन्य । मूसलाधार बारिश के मध्य भी धर्म विपासु बड़ी संख्या में धर्मसभा में उपस्थित हुये । धर्मस्नेही श्रावक-श्राविकाओं को दिव्य देशना प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने कहा – दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति सुन्दर दिखना चाहता है। किन्तु चाहने मात्र से कोई सुन्दर नहीं हो जाता। सुन्दर रूप की प्राप्ति में मुख्य कारण क्या है यदि इसकी खोज करें तो जिनागम कहता है “भक्तेः सुन्दर रूपं ” अर्थात् जिनेन्द्र भगवान् की भक्ति करने वाले भव्य जीव स्वयमेव ही सुन्दर रूप की प्राप्ति होती है। इस लोक में सर्वसुन्दर रूप के घारी कौन होते हैं यह बतलाते हुए आचार्यश्री ने कहा – इस धरा पर सर्वोत्कृष्ट रूप के धारी यदि कोई हैं तो वे तीर्थकर भगवान हुआ करते हैं। आचार्य भगवन् मानतुंग स्वामी ने जिनेन्द्र भगवान् के रूप को सर्वोत्कृष्ट बतलाते हुए कहा है-“हे तीन लोक के अद्वितीय अलंकार रूप भगवन् ! आप जिन प्रशम भाव की कान्ति वाले परमाणुओं से निर्मापित किये गये हो, निश्न्वय से वे अणु भी उतने ही थे क्योंकि आपके समान पृथ्वी पर कोई दूसरा रूप नहीं है।”
“जीवन है पानी की बूंद “महाकाव्य के मूल रचियता आचार्य प्रवर उसमें एक और नवीन काव्य जोड़ते हुए कहा { “आओ दृढ संकल्प करें, भक्ति करें विकल्प हरें। आसक्ति कम कर करके, हम भव सागर अल्प करें। आतम गुण वैभव, हो-हो -२, भक्ति प्रगटाये रे…..
जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे ॥

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