वैज्ञानिकों ने तैयार किया हाईब्रिड बीज जिसमे उत्पादन के साथ तेल की उपलब्धता भी अधिक मिलेगी, तीन दिवसीय 32वीं वार्षिक समूह बैठक का हुआ समापन

ग्वालियर। राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर में तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वित राई-सरसों अनुसंधान परियोजना की 32वीं वार्षिक समूह बैठक के समापन के अवसर पर पत्रकारों से चर्चा करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डॉ. संजीव गुप्ता ने कहा कि देश को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर होना चाहिये। 140 करोड देशवासियों के लिये पर्याप्त भोजन की व्यवस्था करना हमारा एक उद्देश्य रहा है। हमारे देश में दलहन के क्षेत्र में हम उस आयाम तक पहंुच चुके है जहां हम अन्य देशों को भी इसका निर्यात कर रहे है जबकि तिलहन के क्षेत्र में हम अभी भी 58 प्रतिशत अन्य देशों से आयात करते है। आगामी पांच वर्षों में हमें देश को उस स्तर तक ले जाना है कि हम लगभग 70 मिलियन टन निर्यात करें। इस कार्यशाला को मध्यप्रदेश में आयोजित करने का हमे सौभाग्य प्राप्त हुआ है। प्रदेश में 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में यहां सरसों की फसल उगाई जाती है इसकी प्रदेश में उत्पादकता देश की औसत उत्पादकता से अधिक है।
कार्यक्रम में रा.वि.सिं. कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. अरविन्द कुमार शुक्ला ने बताया कि सरसों अनुसंधान परियोजना की 32वी बैठक के बारे में चर्चा करते हुये कहा कि इस कार्यशाला में सरसों की फसल में बीमारियों को कैसे प्रतिबंधित किया जाये फसल विविधीकरण, खरपतवार नियंत्रण एवं सरसों के तेल की उत्पादकता को बढाने आदि विषयों पर देशभर से आये कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अपने विचार प्रस्तुत किये गये है जिसके आधार पर आगामी पांच वर्षों में हम सरसों की उत्पादकता को कैसे बढा सकते है उस पर कार्य योजना तैयार की गई है।
ओरो बैंकी खरपतवार इस समस्या व्यापक
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक विजयवीर सिंह ने कहा कि सरसों में ओरो बैंकी खरपतवार की व्यापक समस्या है। इस खरपतवार की प्रभावी प्रबंधन और समस्या और अनुसंधान अवसरों पर एक र्बेन स्टॉरमिंग सत्र का आयोजन किया गया इस सत्र में डॉ. एस.एस. बांगा, डॉ. एस.आर. भट्ट, डॉ. धीरज सिंह, डॉ. जितेन्द्र कुमार, डॉ. एस. के. शर्मा, डॉ. एस.एस. पिलानिया, डॉ. आर.एस. जाट ने पेनालिस्ट के रूप में भाग लिया। और इस ओरो बैंकी के विभिन्न पहलुओं पर अपने अनुसंधान अनुभवों एवं जानकारियों को साझा किया।
यह पांच किस्में इन क्षेत्रों के लिये उपयुक्त
तीन दिवसीय समापन अवसर पर पत्राकार वार्ता के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के सहायक महानिदेशक (तिलहन एवं दलहन) डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि पहली बार राई-सरसों का हाईब्रिड बीज तैयार किया गया जिससे उत्पादन बढेगा तो किसानों की आय भी बढेगी और लागत कम होगी।
हाईब्रिड बीज 18जे.408सी. यह बीज पश्चिमी राजस्थान और गुजरातव महाराष्ट्र के लिये उपयुक्त है। वहीं सी.एस.-68 यह बीज लवणीय एवं क्षारीय भूमि के लिये उपयुक्त है। पी.एम.-38 एवं बी.पी.एम-1825 बीज पंजाब, जम्मू, हरियाणा, दिल्ली एवं पश्चिमी उत्तरदेश के लिये उपयुक्त है। वहीं बी.पी.एम.क्यू-172 बीज उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और बिहार क्षेत्र के लिये उपयुक्त बताया गया है। इन प्रजातियों से अधिक पैदावार होने के साथ-साथ तेल की उपलब्धता भी सर्वाधिक होगी।
कार्यक्रम में निदेशक विस्तार सेवायें डॉ. संजय शर्मा, कार्यक्रम आयोजक डॉ. एम.के. त्रिपाठी, कार्यक्रम सह-आयोजक सह-संचालक अनुसंधान, मुरैना डॉ. एस.एस. तोमर एवं डॉ. स्वाति सिंह तोमर उपस्थित रहे एवं कार्यक्रम का संचालन डॉ. एकता जोशी ने किया।

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