सहारनपुर-जीवन में जब तक शुद्धि नहीं होती अपने ही विचारों की तब तक जीवन मृततुल्य है। जिनेन्द्र भगवान ने हम सबके लिए तीन प्रकार की शुद्धि बताई है, उनमें पहली है मन शुद्धि पश्चात् वचन शुद्धि और काया शुद्धि। आज हमें मन प्राप्त हुआ है, , मन का कार्य है अच्छे-बुरे का निर्णय करना । याद रखें, यदि आप अपने ही अच्छे-बुरे विचारों का निर्णय करके बुरे विचारों का हटाकर अच्छे-शुभ विचारों का आदर नहीं करते हैं तो आप अपने मन का सदुपयोग नहीं कर पा रहे हैं, आपकी मन शुद्धि नहीं हैं। जहाँ मन शुद्धि नहीं हैं वहाँ शेष शुद्धि भी संभव नहीं है। ऐसा मांगलिक प्रवचन सहारनपुर जैन बाग प्रांगण में नवनिर्मित “वीरोदय तीर्थ मण्डपम्” में उपस्थित धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए युग के महान संत जिनागमपंथ प्रवर्तक भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज ने दिया।” जीवन है पानी की बूंदे ” महाकाव्य में एक और नवीन छंद जोड़ते हुए आचार्य गुरुवर ने कहा -{ भावों की नित शुद्धि हो, हे प्रभु! ऐसी बुद्धि हो 17 मन पावन जीवन पावन, कभी नहीं दुर्बुद्धि हो । सन्मार्ग चर्या, हो-हो-, मेरा मन लहलाये रे, वीरोदय तीर्थ मण्डपम् सहारनपुर जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे ।। मनुष्य जीवन एक खाली घड़े की तरह है। अब आपका ही कर्तव्य-दायित्व है कि आप अपने जीवन रूपी घड़े को शुद्ध विचार रूपी शुद्ध जल से भरते हैं अथवा कीचड़ गन्दे पानी रूपी अशुद्ध विचारों से भरते हैं ? विचारों का बहुत बड़ा प्रभाव होता है वह प्रभाव स्वयं के ऊपर भी होता है और आस–पास के वातावरण पर भी होता है। विचारों से ही आपके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। आज आपके विचारों में धन की बहुत महत्ता है, आप धन को तिजोरी में सुरक्षित रखते हैं लेकिन मुझे बड़ा आश्चर्य होता है आपकी नजरों में आज धन जादा महत्वपूर्ण हो गया है आपकी संतान का आपको कोई महत्व नहीं हैं क्योंकि आज आप अपनी संतान को संस्कार नहीं दे पा रहे हैं याद रखो, संतान की सुरक्षा संस्कारों से है। एक दस के नोट को भी बड़ी सुरक्षा से रखते हो, किन्तु संतान की कोई सुरक्षा नहीं। विचार तो करना ही होगा, क्योंकि आज के बच्चे ही कल का भविष्य हैं।
सहारनपुर में गूंजेगी गुरु विमर्श के श्रीमुख से तीर्थकर महावीर की वाणी। “भक्तामर महिमा “में सहारनपुर वाले जानेंगे जिनेन्द्र भगवान की उत्कृष्ट महिमा। संध्या बेला में गुरु भक्ति -आनन्द यात्रा में झूम रहे हैं सहारनपुर के गुरु भक्त, रात्रिकालीन वैयावृत्ति में मिल रहा गुरु सेवा का अनूठा संस्कार
संतान की सुरक्षा धन से नहीं, संस्कारों से है- भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज
