मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन साधु साध्वियां पंच महाव्रत अहिंसा, सत्य, अचोर्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य का मन वचन काय से निर्दोष रूप से पालन करते हैं। अहिंसा महाव्रत का पूर्ण रूपेण पालन हो, इसीलिए जैन साधु, मुनिराज चातुर्मास करते हैं। बरसात के मौसम में असंख्यात सूक्ष्म जीव उत्पन्न होते हैं, जो दिखाई भी नहीं देते । इन्हीं जीवों की रक्षार्थ जैन साधु मुनिराज वर्षा ऋतु के चार माह पद विहार न करते हुए एक ही स्थान पर चार माह रुककर आत्म साधना करते हैं। स्वकल्याण के साथ साथ प्राणी मात्र के कल्याण हेतु प्रेरित करते हैं। अहिंसा धर्म का पालन करना ही चातुर्मास का मुख्य उद्देश्य होता है । इन चार माह में सभी साधु साध्विया पूर्वाचार्यों द्वारा रचित ग्रंथों का स्वाध्याय एवं अध्ययन करते हुए तत्व चिंतन करते हैं। जैन दर्शन में दिगम्बर जैन संत संयम की साधना करते हुए कर्मों को नष्ट करने हेतु तप करते हुए भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों को अंगीकार करते हैं। आषाढ़ शुक्ल चतुर्दशी को श्री जिनेंद्र प्रभु की भक्तियों का वाचन कर कायोत्सर्ग कर चातुर्मास का प्रतिष्ठान किया जाता है और कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को चातुर्मास का निष्ठापन किया जाता है । सभी साधु व्रत उपवास कर सिद्ध भक्ति, आचार्य भक्ति आदि के माध्यम से संकल्पित होकर वर्षाकाल के चार माह एक ही स्थान पर रुककर अपने महाव्रतों का पालन करते हैं। उक्त उद्गार दिगम्बर जैन मुनिराजश्री विलोक सागर महाराज ने बड़े जैन मंदिर में चातुर्मास प्रतिष्ठापन के अवसर पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
बड़े जैन मंदिर में युगल मुनिराजों ने किया चातुर्मास प्रतिष्ठापन
प्रतिष्ठाचार्य बाल ब्रह्मचारी संजय भैयाजी (मुरैना वाले) ने बताया कि श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पंचायती बड़ा मंदिर में विराजमान आचार्य विद्यासागरजी महाराज से दीक्षित आचार्यश्री आर्जव सागर महाराज के शिष्य मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विवोधसागरजी महाराज ने श्री जिनेंद्र भगवान के समक्ष भक्ति एवं निर्जल उपवास करते हुए संकल्प पूर्वक चातुर्मास की स्थापना की।
इस अवसर पर सकल दिगंबर जैन समाज मुरैना ने श्रीफल अर्पण करके आशीर्वाद प्राप्त किया और संकल्प किया कि हम सभी आपकी साधना में निष्ठा, समर्पण, भक्ति के साथ सहभागी बनेंगे। पूज्य युगल मुनिराजों ने सबको आशीर्वाद देते हुए कहा साधु अपनी साधना और अहिंसा धर्म का पालन करने के लिए चातुर्मास किया करते हैं इसमें श्रावक की एक अहम भूमिका रहती है। साधुओं ने तो आपके यहां चातुर्मास करने का संकल्प ले लिया अब आपका उत्तरदायित्व है कि साधुओं की चर्या में कोई व्यवधान उत्पन्न न हो, इस हेतु सम्पूर्ण समाज को एकजुटता के साथ सहभागिता निभाने हेतु दृढ़ संकल्पित होना होगा ।
चातुर्मास साधु और श्रावक दोनों के लिए -विबोधसागर
मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने बताया कि जैन दर्शन में चातुर्मास साधुओं और श्रावकों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। यह आत्म-सुधार, धार्मिक गतिविधियों में संलग्नता और आध्यात्मिक विकास, अध्यात्म के प्रति पुरुषार्थ करने का समय होता है । भूलवश, अज्ञानतावश, जाने अनजाने में हमसे जो पाप हुए हैं, उनको नष्ट करने हेतु इन चार माह में प्रभु आराधना का समय होता है चातुर्मास । जैन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व है, जैन साधु एवं श्रावक वर्षा ऋतु के चार महीनों में तप त्याग संयम की साधना के साथ इसे मनाते है। इस दौरान जैन साधु-साध्वी एक ही स्थान पर रुकते हैं और धार्मिक गतिविधियों जैसे- स्वाध्याय, प्रवचन और तपस्या में संलग्न होते हैं। श्रावक (गृहस्थ जैन) भी इस दौरान विशेष रूप से धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते हैं, उपवास, प्रतिक्रमण और अन्य धार्मिक कार्यों द्वारा आत्म-सुधार का प्रयास करते हैं। श्रावकों के लिए चातुर्मास आत्म-सुधार और धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने का एक महत्वपूर्ण समय होता है। इस समय का सभी को सदुपयोग करते हुए लाभ उठाना चाहिए ।
आज विधान में सिद्धों की भक्ति के साथ 1024 अर्घ होगें समर्पित
बड़े जैन मंदिर में चल रहे आठ दिवसीय सिद्धचक्र महामंडल विधान में सातवें दिन सिद्धों की आराधना करते हुए 512 अर्घ समर्पित किए गए । जिसमें पंच परमेष्ठी को स्मरण करते हुए पूजा संपन्न हुई एवं पूज्य युगल मुनिराजों के माध्यम से ममन्त्रोंचार किए गए । गुरुवार को आठवें दिन 1024 अर्घ समर्पित करते हुए सिद्ध परमेष्ठि की आराधना पूर्ण होगी ।
शुक्रवार 11 जुलाई को विश्व शांति महायज्ञ का आयोजन होगा । विश्व शांति एवं कल्याण की भावना के साथ महायज्ञ में आहुति दी जाएगी । महायज्ञ के पश्चात श्री जिनेंद्र प्रभु की भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी । श्री जिनेंद्र प्रभु को पाण्डुक शिला पर विराजमान कर कलशाभिषेक किए जायेगें।
जैन दर्शन में अहिंसा धर्म का पालन करना ही चातुर्मास है -मुनिश्री विलोकसागर
