जैन धर्म के 22 वें तीर्थकर नेमिनाथ स्वामी निर्वाण स्थली है “सद्धक्षेत्र गिरनार पर्वत”- भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी मुनिराज

आज से होगी भावी सिद्धों के सानिध्य में अनन्तानंत सिद्धों की आराधना सौभाग्य जागा है सहारनपुर का । प्रथम बार विशाल चतुर्विध संघ के साथ पधारे हैं संघ शिरोमणि आचार्य भगवन् । जो अपनी भाव साधना से इस पंचमकाल में भी करा रहे है चतुर्घकालीन श्रमणों की विशुद्ध न्चर्या का दर्शन, ऐसे “जीवना है पानी की बूंद” महाकाव्य के मूल रचियता संघ शिरोमणि भावलिंगी संत आचार्य भगवन श्री 108 विमर्श सागर जी महा मुनिराज का (ससंघ 30 पीछी) का मंगल पदार्पण सहारनपुर की धरा के लिए एक अनूठा इतिहास बन गया है। 02 जुलाई 2025, बुधवार को आचार्य संघ के सानिध्य में जैन बाग के “श्री 1008 महावीर जिनालय” में जैन धर्म के २२ वें तीर्थकर श्री 1008 नेमिनाथ भगवान का मोक्षकल्याणक महामहोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया। जिनालय में प्रातः कालीन बेला में भगवान की महापूजा के साथ निर्वाण मोदक (लाइ) न्चढ़ाया गया। पूज्य आचार्य गुरुवर ने भगवान नेमिनाथ के मोक्ष कल्याणक पर प्रकाश डालते हुए कहा -जैन धर्म के 22 वें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ स्वामी देवों के द्वारा पंचकल्याणकों के साथ महापूजा को प्राप्त हुये। इस धरा पर एक मात्र तीर्थकर भगवान ही होते हैं जिनकी तीनों लोकों के देवी-देवता आराधना-पूजा करने इस धरती पर आते हैं। ऐसे 22 वें तीर्थकर नेमिनाथ स्वामी ने गुजरात प्रांत के “श्री गिरनार पर्वत ” से निर्वाण – मोक्ष प्राप्त किया। वास्तव में आज हम-आप प्रभु के निर्वाण के लिए नहीं, अपित अपने दुखों के नाश के लिए एवं अपने निर्वाण प्राप्ति के लिए प्रभु के चरणों की आराधना करके
यह निर्वाण लाइ समर्पित करते हैं। आचार्य ने धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये कहा – ‘आज मानव अपने ही स्वरूप को भूलता जा रहा है इसीलिए भगवान के दर्शन तो करता है किन्तु कभी भगवान के स्वरूप की महिमा गाते हुए दर्शन नहीं कर पाता । “अरहंते स्वरूप का दर्शन तो निज आत्म स्परूप से हुआ करता है।
जैन बाग स्थित जैन मंदिर में आचार्य संघ के सानिध्य में प्रारंभ हो रहे “श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान” के मध्य 04 जुलाई को परमपूज्य शुद्धोपयोगी संत सूरिगच्छाचार्य श्री 108 विरागसागर जी महामुनिराज का द्वितीय समाधि दिवस मनाया जायेगा। ज्ञातव्य है 04 जुलाई 2024 को महाराष्ट्र प्रान्त के जालना नगर में आन्चार्य गुरुवर श्री विरागसागर जी महामुनिराज ने इस युग की सर्वश्रेष्ठ समाधि के साथ अपनी देह। का परित्याग किया था, जो सम्पूर्ण श्रमण संस्कृति के लिए आदर्श रूप में चिरकाल तक अनुकरणीय रहेगी। जैन बाग जैन मंदिर में आचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज एवं उनका शिष्य समूह भावविनयांजाल समर्पित करेंगे। साक्षी नरेंगे इस ग्रायोजन के सभी विकतराण, राजनैतिक गग एवं समाज बंधु ।

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