आप वीतरागी गुरु के चरणों में बैठे हैं, विश्वास मानिए “आप भगवान बनने वाले हैं”–भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज

सुरेन्द्रनगर मुजफ्फरनगर में 50 वर्षों के अंतराल बाद पधारे विशाल चतुर्विध संघ आचार्य श्री भक्तसमूह में जब-जब भक्ति की उत्तुंग लहरें उठती है तब-तब निर्ग्रन्य दिगम्बर संतों के चरण रूपी सरितायें उन भक्तसमूह की ओर बढ़ ही जाती हैं। परम पूज्य “जीवन है पानी की बूंद” महाकाव्य के मूल रचनाकार, जिनागम पंच प्रवर्तक भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज इस वर्ष के मंगल चातुर्मास हेतु धर्मनगरी सहारनपुर की ओर निरंतर पद‌विहार कर रहे हैं।
मुजफ्फर नगर में जब से आचार्य संघ के आने की खबर मिली, तभी से सम्पूर्ण नगर में अभूतपूर्व उत्साह उल्लास भक्ति भक्तसमूह में देखा जा रहा है। 17-18 जून को आचार्य भगवन् ससंघ अतिशय क्षेत्र वहलना तथा 19-20 जून को प्रेमपुरी मुजफ्फर नगर में रहे। आज 21 जून को आचार्य प्रवर अपने विशाल चतुर्विध संघ सहित प्रातः कार की मंगल बेला में पद‌विहार करते हुए “सुरेन्द्र नगर कालोनी” में पधारे। भक्त सम्रत मे आचार्य संघ की पलक-पाँवड़े बिछाकर भव्यातिभव्य मंगल आगवानी की
सुरेन्द्रनगर कॉलोनी में उपस्थित विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य प्रवर श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज ने कहा (जो गुरु दर्शन पाता है मन उसका हर्षाता है। गुरु दर्शन गुण दर्शन है, वो गुणमय हो जाता है। गुरु गुण अभागी हो-हो-२, प्रभु गुणों को पाए रे… जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे….
मनुष्य जीवन की हमारी यह यात्रा भगवान बनने की यात्रा है। इस यात्रा में हमारा सबसे पहला परिचय होता है तो, गुरु से। गुरु ही हमें बताते हैं कि बेटा ! तेरा लक्ष्य भगवान बनने का है, बेटा। भगवान बनने के लिए ही तू इस मानव पर्याय में आया है। गुरु ही बताते हैं, भगवान का स्वरूप क्या है और तेरे अंदर भी भगवान बीज की तरह विद्यमान हैं यह भी सद्‌गुरु ही हमें बताते हैं। हम सबके परम उपकारी, कल्याणकारी होते हैं” परम दिगम्बर वीतरागी संत गुरुवर”। बन्धुओ ! आप जीवन भर अपने परिवार की चिंता में गंवा देते हैं और विचार करते हैं कि पूरे परिवार को भी मेरी चिंता रहती है। किन्तु ध्यान रखना, आपके परिवारी जन आपके नश्वर शरीर की चिंता कर सकते हैं किन्तु आपके अविनाशी शाश्वत आत्मा की चिता यदि किसी को है तो वे एकमात्र सद्‌गुरु ही हो सकते हैं। निर्ग्रन्थ वीतरागी दिगम्बर गुरु सदाकाल यह भावना-चितवन करते हैं कि “इस संसार में यह जीव दुःखों को भोग रहा है, मैं कब इसे इन दुःखों से निकालकर सुख स्वरूप मोक्षस्थान में स्थापित कर दूँ।” बन्धुओ ! आज आप सद्गुरु के न्यरगों में बैठकर जिनेन्द्र भगवान की वाणी सुन रहे हैं तो विश्वास करिये कि अब आप भी निकट भविष्य में स्वयं ही भगवान बनने वाले हैं। आपका पुष्प था हमारा योग बना, बस यह संयोग आज बन गया है। गुरु जनों का संयोग भव्य जीवों के भाग्य से ही प्राप्त होता है

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