नाइजर में जब से तख्तापलट हुआ है, अफ्रीका का साहेल क्षेत्र और अशांत हो गया है. विदेशी खतरे और अल-काइदा से संबंधित इस्लामिक विद्रोहियों से निपटने के लिए नाइजर, बुर्किना फासो और माली ने एक रक्षा समूंह बनाई है. यह रक्षा समूंह ठीक पश्चिमी देशों के NATO अलायंस की तरह काम करेगा. ECOWAS यानी इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स ने पहले ही नाइजर को सैन्य कार्रवाई की धमकी दी है. इसके बाद से ही साहेल में सैन्य शासित देशों के शासक खौफ में हैं.
इकोवस से मिल रही धमकियों के बीच नाइजर ने पहले ही पड़ोसी सैन्य शासित देशों माली-बुर्किना फासो से समझौता कर लिया है. अब इस रक्षा समूंह के बनने से नाइजर और ताकतवर हो गया. जिस तरह से अमेरिका के अगुवाई वाले नाटो में नियम हैं, एक पर हमला, सभी पर हमला. इन्हीं नियमों के आधार पर अफ्रीक के इन तीन देशों का समूंह काम करेगा. इकोवस समूंह को पहले से ही माली और बुर्किना फासो के सैन्य शासन से नाराजगी थी. नाइजर तख्तापलट के बाद हालात और बदल गए हैं.
एक पर हमला, सभी पर हमला!
साहेल रक्षा समझौते पर एक साझा बयान में कहा गया है, “कॉन्ट्रेक्ट में शामिल पार्टियों में एक की संप्रभुता और टेरिटोरियल इंटीग्रिटी पर हमला, सभी पर हमला माना जाएगा. इस ग्रुप को अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्स नाम दिया गया है. करार हुआ है कि अन्य राज्य व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से एक-दूसरे की मदद करेंगे, जिसमें सेना का इस्तेमाल शामिल है. माली के सैन्य शासक असिमी गोइता ने बताया कि उन्होंने भी समझौते पर हस्ताक्षर किया है.
सैन्य और आर्थिक मदद के लिए किया गठबंधन
समझौते के मुताबिक, साहेल रक्षा समूंह सैन्य मदद के साथ-साथ आर्थिक मोर्चे पर भी एक-दूसरे की मदद करेंगे. माली के रक्षा मंत्री अब्दुलाये डीओप ने कहा कि इस समूंह का असल मकसद इन देशों में आतंकवाद से लड़ना है. अफ्रीका के यह देश लंबे समय से अल-काइदा और इस्लामिक स्टेट्स समर्थित आतंकवाद से जूझ रहा है. 2020 से साहेल क्षेत्र में तख्तापलट का खेल जारी है. हाल ही में नाइजर की सेना ने राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम को सत्ता से बेदखल कर दिया, जिन्होंने साहेल-आधारित हथियारबंद समूहों के खिलाफ लड़ाई में पश्चिम का साथ दिया था.
फ्रांस की अगुवाई में पहले भी बना ग्रुप
अलायंस के तीनों सैन्य शासित देश फ्रांस द्वारा समर्थित पांच देशों के समूंह जी5 साहेल अलायंस का हिस्सा था. इस समूंह में चाद और मॉरिटोनिया भी शामिल था. इस समूंह को खासतौर पर इस्लामिक विद्रोहियों से निपटने के लिए बनाया गया था. अब चूंकि, नाइजर में सेना का शासन है और फ्रांस के धुर विरोधी हैं, इस ग्रुप ने काम करना बंद कर दिया है. माली की सत्ता पर सेना के कब्जे के बाद से ही ग्रुप निष्प्रभावी हो गया था. पिछले साल राष्ट्रपति बजौम ने भी कहा था कि माली के निकलने के बाद समूंह खत्म हो गया है. सैन्य तख्तापलट के बाद से तीनों देशों के संबंध फ्रांस से भी बिगड़ गए हैं. ताजा मामला नाइजर का है, जहां समझौते से इनकार के बाद सेना ने फ्रांस को देश छोड़ने की चेतावनी दी है