‘जीवन है पानी की बूंदे” महाकाव्य के मूल रचनाकार, संघ शिरोमणि भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज, जिनके पादमूल में 35 पीछी धारी संयमी साधक संयम की साधना, रत्नत्रय की आराधना में संलग्न रहते हैं। ऐसे विशाल चतुर्विधसंघ के अधिनायक श्रेष्ठ दिगम्बराचार्य का ससंघ शीतकालीन प्रवास धर्मनगरी बड़ौत में हो रहा है।
दिसम्बर माह की प्रचण्ड शीत-ठण्ड के साथ आचार्य गुरुवर के श्रीमुख से होगी शीतकालीन वाचना । प्रातः काल की धर्मसभा में “श्री रयणसार महाग्रंथ पर आचार्य गुरुवर धर्मोपदेश प्रदान करेंगे, वहीं दोपहर काल में “श्री षट्खण्डागम जी महाग्रंथ की धवला पुस्तक-1” पर आचार्य संघ के सानिध्य वाचना होगी, जिसके वान्चना प्रमुख डॉ. श्रेयांस कुमार जैन बड़ौत रहेंगे।
18 दिसम्बर की प्रातः बेला की धर्मसभा में आचार्य श्री के चतुर्विध संघ सानिध्य में शीतकालीन वाचना का मंगल कलश स्थापित किया गया । वाचना के कलश स्थापना का परम सौभाग्य श्रावक श्रेष्ठी जिनागम पंथी श्रीमान ब्रिजेन्द्र जैन, तरुण जैन (भगवती स्टील) परिवार ने किया
शीतकालीन वाचना कलशस्थापना में उपस्थित श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुये आचार्य श्री ने कहा- संसार में जीवात्मा तब तक ही रहता है
जब तक जीव के अंदर संसार रहता है। बाहर का संसार चतुर्गति रूप है तो आपके अंदर रहने वाला संसार आपके ही राग-देष-मोह रूप विभाव परिणाम हैं। यह जीव अपने ही अंदर के रागादि विभावों से प्रेरित होकर अपने संसार को बढ़ाता रहता है। परम हितकारी निर्ग्रन्थ मुनिराज भव्य जीवों को राग-द्वेष-मोह आदि विभावों से बचने का उपाय बतलाते हैं। आत्म हित चाहने वाले भव्य जीवात्मा रागादि विभावों से स्वयं की रक्षा करते हुये पर पदार्थ एवं पर भावों से रुचि हटाकर आत्म स्वभाव में ही रुचि बढ़ाते हुये, निज आत्म तत्त्व में लीन होता है।
बड़ौत में हुयी 35 पीछीधारी संयमियों की शीतकालीन मंगल कलश स्थापना

