आगरा (मनोज जैन नायक) राज्यसभा सांसद नवीन जैन ने राष्ट्र संत आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज को मरणोपरान्त (समाधिस्थ) भारत रत्न सम्मान प्रदान किए जाने हेतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आग्रह पत्र लिखा है ।
राज्यसभा सांसद नवीन जैन ने आग्रह पत्र के माध्यम से राष्ट्र संत आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज के अद्वितीय तप, त्याग और राष्ट्र निर्माण में उनके अप्रतिम योगदान को आदरपूर्वक स्मरण कराते हुए विनम्र निवेदन किया है कि भारत सरकार द्वारा उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न प्रदान किए जाने पर विचार किया जाए। भगवान महावीर स्वामी द्वारा प्रदत्त जैन धर्म के पंचशील अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य और ब्रह्मचर्य का जीवन्त स्वरूप आचार्य विद्यासागर जी महाराज में स्पष्ट रूप से दिखाई देता था। उनका सम्पूर्ण जीवन जैन त्रिरत्न-सम्यक् ज्ञान, सम्यक् श्रद्धा और सम्यक् आचरण के अनुपालन का प्रेरक उदाहरण रहा। जैन मुनियों का जीवन चरम संयम और त्याग से परिपूर्ण होता है; परंतु आचार्यश्री इसकी पराकाष्ठा थे। वे प्रतिदिन केवल एक बार अल्पाहार करते थे तथा एक बार ही जल ग्रहण करते थे। सूर्यास्त के पश्चात् मौन व्रत धारण करते थे। दिगंबर परंपरा का पालन करते हुए उन्होंने जीवन भर भौतिक संसाधनों से दूरी बनाई। पैदल यात्रा, अलौकिक अनुशासन तथा अप्रतिम आध्यात्मिक धैर्य के कारण वे समस्त समाज के लिए वंदनीय बने।
पूज्य आचार्यश्री दिनांक 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक के सदलगा में जन्मे, आचार्यश्री ने मात्र 22 वर्ष की आयु में आचार्य श्री ज्ञानसागर जी से दीक्षा ग्रहण कर स्वयं को राष्ट्र और मानवता के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने कठोर तप का पालन किया। नमक, चीनी, फल, सब्जी, दूध, दही, सूखे मेवे, अंग्रेजी दवाई तक का परित्याग। बिना चादर, बिना गद्दे और बिना तकिए के तख्त पर एक करवट में शयन करना उनके तप का अद्वितीय उदाहरण है। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, मराठी और कन्नड़ के वे प्रकाण्ड विद्वान थे। उनके जीवन और साहित्य पर 100 से अधिक पीएचडी हो चुकी हैं। उनकी कृति मूकमाटी सहित 50 से अधिक ग्रंथ आज भारत ही नहीं, विश्व के धर्मचेतना जगत में मार्गदर्शक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके माता-पिता और भ्राताओं सहित संपूर्ण परिवार ने संन्यास ग्रहण किया। यह विरले संतों के जीवन में ही संभव होता है और जैन परंपरा में भी अत्यंत अद्वितीय माना जाता है।
आचार्यश्री ने 500 से अधिक मुनियों और 1000 से अधिक आर्यिकाओं को दीक्षा देकर आध्यात्मिक चेतना का नया आयाम स्थापित किया। बुंदेलखंड में शिक्षा, स्वास्थ्य और जनकल्याण के क्षेत्र में उनके प्रेरणा से अनेक विद्यालय, अस्पताल और सेवा संस्थाएँ स्थापित हुईं, जिनसे समाज का व्यापक उत्थान हुआ।
सांसद ने प्रधानमंत्री को पत्र के माध्यम से स्मरण कराया कि आपने वर्ष 2023 में स्वयं आचार्यश्री के चरणों में नमन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था। उनके देहत्याग के अवसर पर आपने अपने संदेश में उन्हें देश की अपूरणीय क्षति बताते हुए उनके कार्यों को सदैव स्मरणीय बताया। आपका यह भाव स्वयं सिद्ध करता है कि राष्ट्र संतों के प्रति आपकी श्रद्धा और संवेदना कितनी गहन है।
दिनांक 18 फरवरी 2024 को उन्होंने तीन दिन के उपवास और पूर्ण मौन के उपरांत शांतिपूर्वक देहत्याग किया। उनके देवलोकगमन ने सम्पूर्ण विश्व को स्तब्ध कर दिया और समाज के प्रत्येक वर्ग में उनके प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता की भावनाएँ और प्रगाढ़ हो गईं।
सांसद नवीन जैन के अनुसार यद्यपि संतों को शासकीय सम्मान की आवश्यकता नहीं होती, तथापि राष्ट्रनिर्माण में उनके उत्कृष्ट योगदान को चिह्नित करने हेतु समाज का प्रत्येक वर्ग चाहता है कि भारत सरकार आचार्य विद्यासागर महाराज जी को भारत रत्न देकर उनकी अमूल्य तप-परंपरा और सेवा को राष्ट्रीय स्तर पर वंदित करे। हाल ही में कानपुर में आयोजित व्यापारी सम्मेलन में भी यह मांग सर्वसम्मति से पारित हुई, जिसमें मैंने स्वयं भाग लिया था।
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज का जीवन भारत की आध्यात्मिक विरासत, त्याग और तप की सर्वोच्च परंपरा का स्वर्णिम अध्याय है। ऐसे महापुरुष को राष्ट्र का सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रदान करना न केवल समाज की भावनाओं का सम्मान होगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक अमूल्य संदेश होगा
आचार्य विद्यासागर को “भारत रत्न” सम्मान देने बाबत प्रधानमंत्री से किया आग्रह सांसद नवीन जैन ने प्रधानमंत्री को लिखा आग्रह पत्र

