मुरैना (मनोज जैन नायक) संसार में प्राणी भोग विलास में लिप्त होकर गुरु परम्परा को भूलते जा रहे हैं। भौतिकता की चकाचौंध में लोगों ने गुरुओं का सान्निध्य व सत्संग से दूरी बना ली है । जहाँ कुछ परमेश्वर को ही गुरु मानते हैं, तो कुछ आत्म-ज्ञान या तत्वदर्शी संतों को सच्चा गुरु मानते हैं। सच्चा गुरु वह होता है जो शास्त्रों के अनुरूप ज्ञान दे, स्वयं को ईश्वर से एकाकार अनुभव करे, अहंकार से मुक्त हो और शिष्यों को मोक्ष या परम सत्य की ओर ले जाए। गुरु अपने शिष्य को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाकर आत्मबोध कराते हैं, आध्यात्मिक विकास कराते हैं, और जीवन के उच्चतम आदर्शों से जोड़ते हैं। गुरु की कृपा और शिष्य के समर्पण से अज्ञान का अंधकार दूर होता है और प्रकाश की ओर अग्रसर होता है। गुरु का उपकार शिष्य को जीवन में सुख, सौभाग्य, और ऐश्वर्य दिलाता है तथा त्याग की भावना से जोड़ता हुआ मोक्ष मार्ग प्रशस्त करता है । गुरु की महिमा अपरंपार और अतुलनीय है, क्योंकि वे केवल ज्ञान ही नहीं देते, बल्कि अज्ञानता के अंधकार से निकालकर ज्ञान और भक्ति के प्रकाश की ओर ले जाते हैं । गुरु को भगवान का रूप माना गया है । गुरु वह पारस है जो शिष्य को अपने समान महान बना लेता है । गुरु के उपकार को कभी भुलाया नहीं जा सकता । शिष्यों का भी कर्तव्य है कि वे गुरु का सदैव गुणगान करें और साथ ही उनके बताए हुए सद मार्ग पर चलते हुए इस संसार सागर के जन्म मृत्यु को तजकर मोक्ष मार्ग की ओर गमन करें । उक्त उद्गार मुनिश्री विलोकसागरजी महाराज ने उपकार दिवस के अवसर पर बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
। *उपकार दिवस के पावन अवसर पर मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज ने कहा कि जैन दर्शन में गुरु का अत्यधिक महत्व है, क्योंकि गुरु ही शिष्य को अज्ञानता से ज्ञान की ओर ले जाते हैं और आत्मा की मुक्ति के मार्ग पर मार्गदर्शन करते हैं। गुरु, जो अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु होते हैं, वे आत्मा के वास्तविक पथप्रदर्शक हैं जो आध्यात्मिक ज्ञान और मोक्ष प्राप्ति में सहायक होते हैं। गुरु के सान्निध्य से आत्म-अनुशासन और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा मिलता है। गुरु को ‘अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला’ कहा जाता है, क्योंकि वे शिष्यों के अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश भरते हैं। गुरु एक मार्गदर्शक का कार्य करते हैं, जो शिष्य को सही दिशा दिखाकर मंजिल तक पहुँचाते हैं। गुरु के सान्निध्य में ही शिष्य तीर्थंकरों की शिक्षाओं का पालन कर मुक्ति प्राप्त करता है। गुरु का सान्निध्य संयम मार्ग पर चलने में सहायक होता हैं।
आचार्य छत्तीसी विधान का हुआ आयोजन
बड़े जैन मंदिर में चातुर्मासरत मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज के संयम दीक्षा दिवस के अवसर पर बड़े जैन मंदिर में आचार्य छत्तीसी विधान का आयोजन किया गया । विधान में साधर्मी बंधुओं, माता वहनों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया । सभी लोगों ने अष्टदृव्य से पूजन करते हुए अर्घ्य समर्पित किए । रात्रि को बालिका मण्डल एवं नन्हें मुन्ने बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । बच्चों की इस प्रस्तुति की उपस्थित सभी लोगों ने सराहना एवं प्रशंसा की । गुरु भक्ति एवं महाआरती का आयोजन किया गया । गुरु भक्ति के आयोजन में सभी लोगों ने संगीतमय भजनों के साथ भक्तिमय नृत्य प्रस्तुत किए । आज 11 अक्टूबर को संयम दीक्षा दिवस पर होगे आयोजन
आज मुनिश्री विलोकसागरजी एवं मुनिश्री विबोधसागरजी महाराज का संयम दीक्षा दिवस हर्षोल्लास पूर्वक मनाया जाएगा । इस अवसर पर प्रातः जिनेन्द्र प्रभु का अभिषेक, शांतिधारा एवं अष्टदृव्य से संगीतमय पूजन किया जाएगा । युगल मुनिराजों के मुखारविंद से उच्चारित शांतिधारा होगी । चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन, शास्त्र भेट, पाद प्रक्षालन, प्रवचन सभा एवं पढ़गाहन होगा । शाम को विलोकसागर बालिका मण्डल द्वारा “राग से वैराग्य की ओर” नाट्य प्रस्तुत किया जाएगा । अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रश्नमंच, गुरु भक्ति, महाआरती सहित अनेकों आयोजन होंगे
गुरुकृपा और शिष्य समर्पण से अज्ञान का अंधेरा दूर होता है – मुनिश्री विलोकसागर
