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बिलकिस बानो केस का दोषी कर रहा था वकालत, सुप्रीम कोर्ट भी हुआ हैरान

बिलकिस बानो का एक दोषी वकालत करता पकड़ा गया है. इस बात का खुलासा खुद उसके वकील ने कोर्ट के सामने किया. इससे खुद सुप्रीम कोर्ट भी हैरान है. कोर्ट ने कहा कि वकालत एक नेक पेशा है. गैंगरेप और हत्या का दोषी कैसे वकालत कर सकता है? बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों में एक राधेश्याम शाह पेशे से वकील था. उसने कोर्ट को बताया कि वह पहले भी वकालत करता था और अभी मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण में वकालत करता है.

राधेश्याम उन दोषियों में एक ही जिसे कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुनाई थी. कथित रूप से 15 साल की सजा पूरी करने के बाद उसे गुजरात सरकार ने छूट नीति के तहत रिहा कर दिया. इसपर बिलकिस बानो सुप्रीम कोर्ट गईं, जहां जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है.

आप एक मुजरिम हैं, दोषी को वकालत का लाइसेंस दिया जा सकता है?

गैंगरेप और हत्या मामले के दोषी राधेश्याम के वकील ऋषि मल्होत्रा ने कोर्ट को बताया कि उनके मुवक्किल ने 15 साल की सजा काट ली है. राज्य सरकार ने उसके आचरण के आधार पर उसे राहत दी. राधेश्याम ने कोर्ट ने को बताया कि इस 15 साल की अवधि में उसके खिलाफ कोई मामला नहीं आया. उसने बताया कि वह वकील था, वकील है और फिर से वकालत भी शुरू की है. इसपर बेंच ने पूछा कि क्या सजा के बाद वकालत का लाइसेंस दिया जा सकता है? बेंच ने कहा कि वकालत एक नेक पेशा माना जाता है. आप एक मुजरिम हैं, इसमें कोई शक नहीं.

क्या कहता है अधिवकता अधिनियम?

सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने साफ किया कि दोषी को छूट नीति के तहत भले ही छूट मिल गई लेकिन दोषसिद्धी बरकरार है. सिर्फ सजा कम की जाती है. कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल को यह बताना होगा कि क्या एक दोषी को वकालत का लाइसेंस दिया जा सकता है? इसपर राधेश्याम के वकील ने कहा कि वह इसपर कुछ नहीं कह सकते. अधिवक्ता अधिनियम में साफ किया गया है कि नैतिक अधमता से जुड़े अपराध के दोषी को वकील के रूप में नामांकित नहीं किया जा सकता.

नई छूट नीति के तहत दोषियों की रिहाई पर सवाल

अधिवक्ता अधिनियम की धारा 24ए में कहा गया है यह अयोग्यता दोषी की रिहाई या मामला खत्म होने के दो साल बाद तक प्रभावी नहीं होगा. आसान भाषा में कहें तो इस तरह के अपराध का कोई भी दोषी सजा पूरी कर जेल से रिहा होने के बाद दो साल तक वकालत नहीं कर सकता. गुजरात सरकार ने नई छूट नीति के तहत दोषियों को रिहा किया. 2014 की नीति में यह नियम है कि अगर किसी मामले की जांच सीबीआई ने की है या फिर बलात्कार या सामूहिक बलात्कार के साथ हत्या के लिए दोषी ठहराए गए शख्स को सरकार छूट नीति के तहत रिहा नहीं कर सकती

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