जसवंतनगर(इटावा)-दशलक्षण महापर्व के अंतर्गत मंगलवार को नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में सुगंध दशमी पर्व हर्षोल्लास और भक्ति भाव से मनाया गया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में महिलाओं ने व्रत धारण कर उत्तम त्याग धर्म और संयम की प्रेरणा दी।
सुबह जिनेन्द्र भगवान का अभिषेक एवं शांतिधारा की गई। तत्पश्चात शीतलनाथ भगवान की पूजा-अर्चना संपन्न हुई। सायंकालीन कार्यक्रम में हवन कुंड में धूप अर्पित कर भगवान से आठों कर्मों के नाश एवं मोक्ष पद प्राप्ति की मंगलकामना की गई। संगीतमय आरती और भक्ति नृत्य के साथ सांस्कृतिक प्रस्तुतियां हुईं, जिनमें प्रतिभागियों ने अपनी श्रेष्ठ प्रतिभा का परिचय दिया।
कार्यक्रम के दौरान विद्वान श्रेयांश भाईया ने उत्तम संयम धर्म पर विस्तृत प्रवचन दिया। उन्होंने कहा“संसार सागर से पार होने का एकमात्र मार्ग संयम है। बिना संयम धर्म धारण किए मोक्ष संभव नहीं। यह संयम केवल मनुष्य गति में ही प्राप्त हो सकता है, देवगति तक में इसकी उपलब्धि नहीं है।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि संयम आत्मा की साधना का सर्वोच्च साधन है। यही साधना जीव को कर्मबंधन से मुक्त कर मोक्षमार्ग की ओर अग्रसर करती है।
धर्मसभा में बताया गया कि सुगंध दशमी व्रत का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत के पालन से जीवन में संचित दोष और दुष्कर्मों का क्षय होता है। महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी इस व्रत को धारण कर आत्मशुद्धि एवं संयम के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं।
मान्यता है कि पूर्व जन्म में एक स्त्री ने मुनिराज की निंदा की थी। इसके फलस्वरूप उसे दुर्गंधयुक्त शरीर प्राप्त हुआ। मुनिराज ने उसे भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन सुगंध दशमी व्रत करने का उपदेश दिया, जिससे उसकी पीड़ा दूर हुई। तभी से इस व्रत का धार्मिक महत्व बढ़ा और इसे विशेष रूप से संयम व आत्मशुद्धि के पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।
सोमवार देर शाम मंदिर प्रांगण में एक आकर्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित हुआ। इसमें “अकलंक-निकलंक” पर आधारित नाट्य प्रस्तुति मंचित की गई, जिसे देखकर श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।
साथ ही नन्हे-मुन्ने बच्चों ने “ले चलो मुझे तीर्थ करन” जैसे भजनों की नृत्य नाटिका की प्रस्तुति दी जिसमे मात्र 5–6 वर्ष की आयु के बच्चों के मंचन ने उपस्थितजनों का मन मोह लिया। उनकी प्रस्तुतियों पर सभागार तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।