मुरैना (मनोज जैन नायक) जैन दर्शन में प्राणी मात्र के कल्याण पर जोर दिया गया है । संसार के प्रत्येक प्राणी के अंदर अपार क्षमता है । लेकिन कषायों के वशीभूत होकर वह सब कुछ भूल चुका है । सांसारिक प्राणी क्रोध, मान, माया लोभ के वशीभूत होकर चार गति चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता रहता है । संसार सागर से पार होने के लिए पूर्वाचार्यों ने हमें दो मार्ग बतलाए हैं । प्रथम मार्ग श्रमण परम्परा यानिकि मुनि बनाना होगा, दिगंबरत्व धारण करना होगा । द्वितीय मार्ग गृहस्थ अवस्था यानिकि श्रावक धर्म स्वीकार करना होगा । मुनिराज तो पंच महाव्रत, अहिंसा महाव्रत, सत्य महाव्रत, अचौर्य महाव्रत, अपरिग्रह महाव्रत, ब्रह्मचर्य महाव्रत का पालन करते हुए पूर्णरूपेड़ पाप आदि क्रियाओं से दूर रहकर धर्माराधना करते हैं। मुनिराज तो महाव्रती होते हैं, पांचों महाव्रतों का पालन करते हुए, अपने अंतरंग से विकारों को नष्ट कर, संयम की साधना कर लेते हैं, लेकिन गृहस्थ अवस्था में श्रावक इन पांच पापों का पूर्ण त्याग नहीं कर पाता, यही कारण है कि वह संयम भी धारण नहीं कर पाता। इसीलिए पूर्वाचार्यों ने श्रावकों के लिए कहा है कि श्रावकों को शनै: शनै: अभ्यास करते हुए अपना मोक्ष मार्ग प्रशस्त करना चाहिए । उक्त उद्गार दिगम्बर जैन मुनिराजश्री विलोकसागरजी महाराज ने बड़े जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए ।
मुनिश्री ने दसलक्षण धर्मणके महत्व को समझाते हुए कहा कि पर्यूषण पर्व में दस धर्मों की आराधना, भक्ति, पूजन करते हुए आत्मकल्याण के मार्ग की ओर बढ़ना चाहिए । आचार्य भगवन्तों ने कहा है कि दसलक्षण पर्व में सभी श्रावकों श्राविकाओं को धर्माचरण करते हुए आत्मकल्याण की भावना को प्रवल करना चाहिए । वर्तमान में भादो माह के दसलक्षणों का अधिक महत्व है । इस पर्व में सभी को अधिक से अधिक संयम साधना करते हुए अपने कर्मों की निर्जरा करना चाहिए । इस पर्व के दिनों में सभी श्रावकों को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए संयम साधना के साथ व्यतीत करना चाहिए। इन दिनों प्रतिदिन एक समय शुद्ध सात्विक भोजन करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्याग कर, तीनों समय सामायिक करना चाहिए । दस धर्मों का पूर्ण रूप से पालन करते हुए, आरंभ परिग्रह से दूर रहकर आत्म चिंतन करना चाहिए । संयम पथ की साधना करते, संसार भोगों का पूर्ण त्याग कर, अंतरंग के विकारों को नष्ट करते हुए दिगंबरत्व धारण कर, सिद्धत्व को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए । धर्म के दसलक्षण यानिकि पर्यूषण पर्व हमें तीतर से तीर्थंकर बनने की प्रेरणा देते हैं । आत्मशुद्धि का यह पुनीत पावन पर्व राग द्वेष से दूर रहकर सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं ।
संयम की साधना में पंचेंद्रियों पर अंकुश आवश्यक है -मुनिश्री विलोकसागर
