विश्व शान्ति का आधार है दसलक्षण महापर्व- श्रमणाचार्य विमर्श सागर जी महामुनिराज

दिगम्बर जैनधर्म में भाद्रपद शुक्ला पंचमी का दिन विश्वशान्ति के लिए समर्पित प्रथम दिन है। दसलक्षण महापर्व वास्तव में विश्व शान्ति पर्व है, क्योंकि धर्म के इन दस लक्षणों के माध्यम से ही विश्व में शान्ति स्थापित की जा सकती है। यदि गहराई से चिन्तन किया जाये, तो धर्म के यह दस लक्षण केवल जैनों के पर्व या व्रत नहीं हैं अपितु प्रत्येक मानव के लिए जीवोनोपयोगी हैं। उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य एवं उत्तम ब्रह्मचर्य ये दसलक्षण धर्म कहलाते हैं। ये भाद्रपद शुक्ला चतुर्दशी को पूर्ण होते हैं।
*उत्तम क्षमा धर्म – आत्मा क्षमा स्वभावी है। यदि कोई क्रोध कषाय का
कारण उपस्थित हो जाये, तो भी क्षमा धर्म का पालन करना वास्तव में वीरों का कार्य है। क्रोध समस्या का समाधान नहीं अपितु स्वयं एक समस्या है। क्षमा हर समस्या का जीवंत समाधान है।
*उत्तम मार्दव धर्म – मृदुता का भाव ही उत्तम मार्दव धर्म है। मान कषाय
के कारण आत्मा में कठोरता आ जाती है। जिस प्रकार कठोर भूमि पर पड़ा श्रेष्ठ बीज भी नष्ट हो जाता है। उसी प्रकार कठोर परिणामी आत्मा का धर्म करना भी अप्रयोजनीय होता है।
*उत्तम आर्जव धर्म मन-वचन काय की सरलता का नाम ही उत्तम
आर्जव धर्म है। आर्जव धर्म मायाचार, छल-कपट से बचाता है। मनुष्य का आचरण जब तक छल-कपट युक्त होगा, तब तक वह धर्मविहीन माना जाता है। क्योंकि छल से किया धर्म विनाश का कारण है।
*उत्तम शौच धर्म – शुचिता का होना ही शौच धर्म है। लोभ कषाय के
कारण मानव का मन सदा अशुचि बना रहता है। संतोष की भावना जब हृदय में प्रकट होती है तब मन में शुचिता का भाव जाग्रत होता है। इस धर्म के पालन से छोटे-बड़े का भेद मिट जाता है।
*उत्तम सत्य धर्म दूसरों को पीड़ादायक कठोर वचन परनिंदापरक
वचन, झूठ वचन तथा दूसरों को नीचा दिखाने वाले वचन, असत्य की श्रेणी में आते हैं। इन सभी असत्य वचन को त्याग कर हित-मित प्रिय वचन कहना, उत्तम सत्य धर्म है। इस धर्म के होने पर ही धार्मिकता होती है।
*उत्तम संयम धर्म – मनोबल को बढ़ाने की अचूक औषधि संयम है।
संयम धर्म के द्वारा साधक अनियंत्रित इन्द्रिय और मन पर नियंत्रण रखता है। षट्‌काय के जीवों की रक्षा करता है। उत्तम संयम धर्म मनुष्य को सामाजिक, नैतिक, धार्मिक एवं जिम्मेदार बनाता है।
*उत्तम तप धर्म – इच्छाओं को रोकना ही तप है। अन्तरंग एवं बहिरंग
तपों के द्वारा आत्मा को शुद्ध किया जाता है। जिस प्रकार स्वर्ण तपकर ही शुद्ध बनता है, भोजन तपकर ही स्वादिष्ट बनता है। उसी प्रकार यह आत्मा तपश्चरण की साधना से परमात्मा बनता है।
*उत्तम त्याग धर्म आत्मा के राग-द्वेष आदि काषायिक भावों का
अभाव होना ही वास्तविक त्याग धर्म है। चार प्रकार के दान भी इसी त्याग धर्म के अन्तर्गत आते हैं। साधना का सच्चा आनन्द राग में नहीं अपितु त्याग में ही है। निस्वार्थ भाव से दिया गया दान ही त्याग धर्म है।
*उत्तम आकिंचन्य धर्म – सांसारिक वस्तुओं के साथ ‘मैं’ और ‘मेरेपन’
का संबंध भी विसर्जित कर देना, और निज शुद्धात्मा ही एकमात्र मेरा है, ऐसी गहन आत्मानुभूति का नाम ही उत्तम आकिंचन्य धर्म है। ‘मैं’ और ‘मेरेपन’ का भाव संसार भ्रमण का कारण है।
उत्तम
ब्रह्मचर्य धर्म निज आत्मा में रमण करना उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है।
ब्रह्मचर्य धर्म के द्वारा ही समाजवाद की स्वस्थता कायम रह सकती है। ब्रह्मचर्य धर्म से असंयम, अश्लीलता, अमर्यादा, बलात्कार जैसी घटनाओं पर अंकुश लग सकता है, तथा जनसंख्या वृद्धि का समाधान भी मिल सकता है। ब्रह्मचर्य धर्म सर्वधर्मों की सिद्धि का आधार है।
दसलक्षण महापर्व के इन दस दिनों में सभी लोग अपना खान-पान, रहन-सहन, आचरण सुधारें। सामायिक, संयम, साधना, उपवास से जुड़ें। व्यापार, गपशप, सीरियल का परित्याग करें। सादगी और सात्विकता से अपना जीवन धर्ममय बनायें।

Please follow and like us:
Pin Share