मुप्ज़फ्फर नगर वालों’ की रुचि दिगम्बर जिनरूप की सेवा-वैयावृत्ति करने में है–भावलिंगी संत दिगम्बराचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

जैनमिलन बिहार को मिला उपसंघ के चातुर्मास का मंगलमय आचार्य प्रवर का आशीर्वाद

मुजफ्फर नगर जैन समाज के मुख पर बस एक ही बाल है” इतना विशाल संघ हमने अपने नगर में प्रथम बार देखा है।” आन्चाये प्रवर का वात्सल्य अनुपम है, सरलता की तो पूज्य आचार्य भगवन् साक्षात् मूर्ति हैं, आचार्य श्री के दर्शन करके तो लगता है हमने साक्षात् महावीर भगवान के ही दर्शन हो गये हैं।”जी हाँ, भावलिंगी संत, संघ शिरोमणि आचार्य प्रवर 108 श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज (ससंघ 33 पीछी) के प्रथम बार धर्मनगरी मुज़फ़्फ़रनगर आगमन से भक्त समूह के मुखों से ऐसे ही उद्‌गार बारंबार प्रस्फुटित हो रहे हैं।
19 जून को आचार्य संघ ने मुज़फ़्फ़रनगर में मंगल पदार्पण किया। प्रेमपुरी, अबु पुरा, सुरेन्द्रनगर कालोनी, मुनीम कॉलोनी पटेलनगर की समाज को सौभाग्य प्रदान करते 23 जून को आचार्यश्री ससंघ जैन मिलन विहार में एवं संध्या बेला में नयी मण्डी के जैन मंदिर में पधारे। जैन मिलन बिहार में उपस्थित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए आचार्य भगवन् कहा प्रभु। मोह घटता जाए, राग-द्वेष घटता जाए। आत्म शुद्धि के हेतु मन, प्रभु नाम रटता जाए। { शुद्धि बिन बुद्धि, हो-ही-2 कोई काम न आये रे ….जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे..
जैन मिलन विहार – मुजफ्फर नगर किसी ने पूछा- भगवन् ! गृहस्थ जीवन में सुखपूर्वक कैसे जिया जा सकता है? मैंने कहा- गृहस्थ जीवन में यदि सुखपूर्वक रहना है तो आप उदा‌सीन होकर जीवन जियें। गृहस्थी में रहते हुए भी गृहस्थिक कार्य करते हुए भी उनसे विरक्त-उदासीन रहो। जिसप्रकार, जल पर आपकी परछाई पड़ रही हो किन्तु परछाई जल में भींगती नहीं है उसी प्रकार जो गृहस्थ घर, परिवार, व्यापार आदि कार्यों में उदासीन रहे तो वह घर, व्यापार आदि के पाप से लिप्त नहीं होता । बन्धुओं। आप किसी इष्ट व्यक्ति या पदार्थ के वियोग में दुःखी होते हैं तो आपको ज्ञात हो, आप उसके वियोग में दुःखी नहीं होते, आप वास्तव में अपने ही मोह-राग के कारण दुःखी होते हैं। आप जितने उदासीन भाव से पर पदार्थों में राग-मोह को घटायेंगे, आप उतने ही निराकुल और सुखी होते जायेंगे। इसीलिए वास्तव में दुःख का कारण पर पदार्थ नहीं है, अपितु पर पदार्थ के प्रति होने वाला आपका ही राग-द्वेष-मोह ही आपके दुःख का कारण है। आपको अपनी रुचि पहिचानना चाहिए। किसी की रुचि मीठे में होती है, किसी की रुचि नमकीन में होती है तो किसी खट्‌टे-चरपरे आदि में होती है पर सच कहूँ – ” “मुज़फ़्फ़र नगर वालों की रुचि दिगम्बर रूप को ही देखने में है। और उनकी सेवा-वैयावृत्ति करने में है।” आपको इस रुचि को मेरा आशीर्वाद है यह ऐसे ही निरंतर बड़ती जाये। मुजफ्फर नगर की जैन मिलन बिहार जैन समाज को प्राप्त हुआ मंगलमय आशीर्वाद | आचार्य संघ से एक आर्थिका उपसंघ का होगा मुजफ्फरनगर नगर में चातुर्मास

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