शाब्दिक उपदेशों से भी अधिक शिक्षा व संस्कार जनमानस को तब प्राप्त होता है जब दो संत वात्सल्य भाव के साथ परस्पर आत्मीय मिलन करते हैं। जनसमूह को बिना बोले ही “जीवन कैसे जीना चाहिए” यह सदुपदेश प्राप्त हो जाता है। ऐसा ही शुभ पावन दृश्य 19 जून की प्रातः बेला में धर्मनगरी मुज़फ्फर नगर में देखने को मिला, जब अतिशय क्षेत्र वहलना से पद विहार करते हुए आ रहे “जीवन है पानी की बूंदै महाकाव्य के मूल रचनाकार “जिनागम पंच प्रवर्तक आदर्श महाकवि संघ शिरोमणि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज (ससंघ उउपीदी) एवं परमपूज्य पाठशाला प्रेरक, शिखरजी आंदोलन प्रणेता आचार्य श्री ५०४ भारतभूषण जी मुनिराज का धर्मधरा मुज़फ्फर नगर में महामंगल मिलन के साथ दोनों आचार्य संघों का एकसाथ महामंगल भव्य प्रवेश महानगर में हुआ। ज्ञातव्य हो कि भावलिंगी संत आचार्य श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज (ससंघ 33 पीछी) का धर्मनगरी मुजफ्फरनगर में प्रथम बार पदार्पण हुआ। स्थानीय जैन समाज ने बढ़-चढ़कर विशाल जन समूह के साथ आवर्ष संघ की भव्यातिभव्य मंगल आगवानी की। नगर के मस्ततम मागों से पदविहार करते हुए गुरुवर ने सबंध जिन मंदिरों के दर्शन करते हुए प्रेमपुरी के जैन मंदिर में मंगल परार्पण हुआ। प्रतिदिन प्रातः 08:00 बजे ‘आचार्य श्री का मंगल प्रवचन एवं सायं 06:30 बजे गुरु भक्ति रहेगी
दो आचार्य संघ का हुआ एक साथ मुजफ्फर नगर में भव्य मंगल प्रवेश
धरम पूज्य आचार्य प्रवर भावलिंगी संत श्री विमर्श सागर जी महामुनिराज ने विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा रागद्वेष मिटाना है, आतम शुद्ध बनाना है।
वीतरागता अनुभव कर जीवन सफल बनाना है।
भावों की शुद्धि, हो-हो-2, ही धर्म कहाए रे.
जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाए रे..
आप अपने जीवन में मात्र इच्छायें ही पैदा करते रहते हैं और उन इच्छाओं की पूर्ति में ही अपना सम्पूर्ण जीवन समाप्त कर देते हैं। इस जगत में कभी भी आज तक किसी की भी इच्छायें पूरी नहीं हुई है फिर भी आपकी इच्छाये बेलगाम बड़ती जाती हैं और आप पूरे जीवन भर बेतहाशा भागते रहते हैं परन्तु खेद है आपकी इच्छायें पूरी नहीं होती है और आपको अंत में दुःख ही उठाना पड़ता है। बन्धुओं! एक संत और संसारी प्राणी में यही
तो अंतर है कि एक संत चाहता है कि मेरे अंदर जितनी इच्छायें हैं वे सब नष्ट हो जायें और आप सब संसारी जीव बाहते हैं कि मेरी इच्छायें कैसे पूरी होगी, ऐन-केन प्रकारेण मेरी इच्छा की पूर्ति होनी चाहिएण ध्यान रखना, भगवान जिनेन्द्र देव महावीर स्वामी कहते हैं – “मोहनीय कर्म के कारण संसारी जीव के अंदर इच्छायें उत्पन्न होती है जो मात्र दुःख ही देती हैं।
बन्धुओं! मैं यह नहीं कह रहा कि आप सब घर परिवार, इच्छायें छोड़कर संत-महात्मा बन जायें “वैसे सच कहूँ तो एक संत की करुणा यही होती है, वे यही चिंतन करते हैं कि सभी प्राणी दिगम्बर श्रमण बनकर अपनी आत्मा को परमात्मा बनायें ॥ किन्तु यदि आप इच्छाओं को त्याग न सकें तो भी अपनी इच्छामों आप सीमित करके धर्मध्यान के अनुकूल इच्छाओं को रखकर आत्म कल्याण के मार्ग पर संलग्न हो सकते हैं। अपने अन्दर उठने वाली इच्छाओं को पहिचान कर आप अशुभ इच्छाओं को, अनर्थकारी इच्छाओं को त्यागकर शुभ, हितकारी इच्छायों को पैदाकर अपने जीवन से दुःखों को अलविदा कह सकते हैं। आपकी इच्छायें जितनी सीमित होंगी, जीवन में आनंद बढ़ता चला जाएगा। बन्धुओं। हम सबका आत्मा सभी इच्छाओं से रहित है हम सभी उस आत्म स्वभाव को प्रकट करें यही तीर्थेश की वाणी है।
आचार्य श्री भारत भूषण जी मुनिराज ने कहा -संत-महापुरुर्षो के दर्शन असीम पुण्य से प्राप्त होते हैं। पूज्य आचार्य श्री के दर्शन सञ्चना में में प्राप्त हुआ था। आज पुनः आचार्य भगवन्ट के दर्शन वंदन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मुजफ्फरनगर का परम सौभाग्य है जो आचार्य भगवन का विशाल त्चतुर्विध संघ यहाँ पधारा। आप सब आचार्य संघ की भरपूर सेवा करें और अपना आत्म कल्याण मार्ग प्रशस्त करें