उत्तर प्रदेश बहलना – भारतीय वसुन्धरा सदा से ही निर्गन्ध दिगम्बर वीतरागी श्रमणों की पवित्र पदरज से पावन होती रही है। वर्तमान संत परम्परा के परम प्रवाहक “जीवन है पानी की बूंदे” महाकाव्य के मूल रचनाकार, “जिनागम पंथ जयवंत हो “के पवित्र नारे से जैन एकता का शंखनाद करने वाले, परम पूज्य जिनागम पंथ प्रवर्तक आदर्श महाकवि संघ शिरोमणि भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज अपने विशाल चतुर्विध संघ (33 पीछी) के साथ पदविहार करते हुए उत्तरप्रदेश के अतिशय क्षेत्र “वहलना” पहुँचे । अतिशय क्षेत्र वहलना के समीपस्य धर्मनगरी मुजफ़्फ़रनगर की सम्पूर्ण जैन समाज ने आचार्य संघ का हर्षीत्साह पूर्वक अतिशय क्षेत्र पर प्रवेश कराया। आचार्य गुकवर ने सर्वप्रथम क्षेत्र के मूलनायक श्री 1008 परिर्वनाथ भगवान के संघ सहित दरर्शन प्राप्त किये। अतिशय कारी भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की अभिषेक शांतिधारा के पश्चात उपस्थित धर्मसभा को सम्बोधित करते हुये कहा
जिनवर जैसा रूप नहीं, साधु समा स्वरूप नहीं। राग-द्वेष निन्ना चुगली, जैसा रूप कुरूप नहीं।
पारस क्षमा की हो-हो-2, हो मूरत कहलाए रे जीवन है पानी की बूंदे, कब मिट जाये रे….
मनुष्य अपने जीवन में अनेक की अच्छाईयां और बुराईयों देखता है। अब आप पर निर्भर है कि झाप क्या क्या देखना चाहते हैं? यदि आपके अन्दर अच्छाईयाँ होंगी तो आपको हर तरफ अच्छाईयाँ ही अच्छाईयां दिखाई देंगी। और यदि भाप बुराईयों के संग्रहालय होंगे तो आपको चारों ओर बुराईयाँ ही दिखाई देंगी। बन्धुओ ! आपकी दृष्टि ही यह निर्णय करेगी कि झाप बुराईयों के संग्रहालय है या अच्छाईयों के । विशाल जनसमूह को सम्बोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा- प्रिय धर्मप्रेमी बन्धुओ। यह बतलाओ आप सुंदर हो या भगवान पार्श्वनाथ स्वामी सुंदर हैं? आप तो अपने शरीर का हर पल साज-श्रृंगार करते रहते हैं, तेल फुलेल इत्र आदि से सुगंधित करते रहते हो, वस्त्र – आभूषणों से सदैव अपने को सुंदर दिखाने का प्रयास करते रहते हो, फिर भी सन्च-सच बताना – आप सुंदर हैं या भगवान ? आप सबका एक ही जबाव आ रहा है कि “भगवान ही सबसे अधिक सुंदर हैं”। बन्धुओं ! संसारी जीवों में राग-देष-काम-क्रोध-लोभ-मोह-प्राणक्ति आदि दुर्गुण सदा हरे-भरे बने रहते हैं इसलिए साज-श्रृंगार करते हुए भी आप सुंदर नहीं बन सकते, जबकि जिनेन्द्र भगवान ने राग-द्वेष-क्रोध-लोभ आदि 18 दोषों का नाश कर दिया है, नारी-कर जिनेन्द्र भगवान की सुंदरता वीतरागता की सुंदरता है जो कभी फीकी नहीं पड़ती। सच तो ये है कि जिनेन्द्र भगवान के सच्चे भक्त को भी वैसी ही वीतरागता की सुंदरता प्राप्त हो जाया
करती है। आज मैं संघ सहित वहलना आया हूँ। पहली बार आया हूँ। पार्श्व प्रभु के दर्शन कर मन अत्यंत आनन्दित है, प्रफुल्लित है।
परम पूज्य आचार्य गुरुवर विमर्श सागर जी महामुनिरख की मंगल विहार 2025 के त्यातुर्मास हेतु धर्मनगरी सहारनपुर की ओर चल रहा है। आन्चार्य श्री के मंगल प्रवचन के बाद स्थानीय अतिशय क्षेत्र कमेटी ने गुरुवर के त्चरणों में अपने प्रवास को और आगे बढ़ाने का विनम्र निवेदन किया। फिलहाल 17-28 जून आचार्य संघ अतिशय क्षेत्र में प्रवासरत है। 19 जून की प्रातः बेला में आचार्य श्री ससंघ एवं मम्चार्य श्री भारतभूषण जी सुनिराज धर्मनगरी मुज़फ्फरनगर में भव्य मंगल प्रवेश करेंगे
सुंदरता आभूषणों से नहीं, वीतरागता से आती है–भावलिंगी संत आचार्यश्री 108 विमर्श सागर जी महामुनिराज
