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अपने मन को धार्मिक आजादी प्रदान करें। मन को स्वच्छंद न बनायें ⇒ भावलिंगी संत आचार्य श्री 108 विमर्शसागर जी मुनिराज

उत्तर प्रदेश खतौली में अपने जीवन को सुंदर बनाने के लिए अपने मन को आज़ाद करना होगा। आप कहोगे कि गुरुदेव मन तो हमारा वैसे ही आजाद है उसे क्या आजादी देनी ? ध्यान रहे, आपका मन आज़ाद नहीं है आपका मन स्वच्छंद है। आपका मन स्वच्छंद है पंचेन्द्रियों के पापवर्धक विषयों में। आपका मन स्वच्छंद है मन-वचन- काय की उद्‌दण्डताओं में । आपका मन स्वच्छंद है पापों में एवं व्यस्नों में। यह स्वच्छंदता आपकी असली आजादी नहीं है। वास्तविक आजादी वह है जहाँ आप धर्म कार्य करने के लिए स्वतंत्र हो । अभी तो आप धर्म-अनुष्ठान भी परतंत्रता में करते हैं। यदि आपका मन अधिक समय मंदिर आदि धर्म स्थानों में लगने लग जाए तो परिवार के द्वारा आपके ऊपर प्रतिबंध लगा दिए जाते हैं। बन्धुओ ! जागना होगा, कब तक आप स्वच्छंदता को ही आज़ादी मानते रहोगे । आज़ादी का यह भ्रम आपको पतन मार्ग की ओर बढ़ा रहा है। कर्तव्य पथ पर चलना मन की आज़ादी है। अहिंसा, सत्य, अन्चौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि व्रत – भावना रूप चिन्तन के लिए मन को स्वतंत्र कर देना मन की आज़ादी है। धार्मिक चिन्तन में मन स्वतंत्रता प्राप्त करे वही मन की सन्च्ची आज़ादी है।
अपने मन को धार्मिक आजादी प्रदान करें। जीवन को खुशहाल बनाने के लिए मन को तीर्थ बनाना होगा । आपका मन तब ही तीर्थ बनेगा जब आप अपने मन को धार्मिक आज़ादी प्रदान करेंगे

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