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भगवान वीतरागी होते हैं, जो वीतरागी नहीं वह तो मेहमान है–भावलिंगी संत श्रमणाचार्य श्री विमर्शसागर जी महामुनिराज

खतौली में हो रही बीतराग धर्म की वर्षा ”
“जीवन है पानी की बूंद” महाकाव्य जिनकी मूल रचना एवं महाकृति है। जो विशाल चतुर्विध संघ के कुशल संचालक एवं अधिनायक है अतएव “संघ शिरोमणि” हैं। जो निष्पृहता, अनासक्ति, स्वाभिमानी, आदि अनेक गुणों को धारण करने से “भावलिंगी संत” के रूप में लोक में विख्यात हैं। जैन एकता के लिए जिन्होंने “जिनागम पंथ” का सर्वोच्च नारा प्रदान किया ऐसे वर्तमान संत परंपरा के सर्वोच्च साधक “आचार्य प्रवर श्री 108 विमर्शसागर जी महामुनिराज वर्तमान में धर्मनगरी खतौली में संघ सहित विराजमान रहकर धर्मविपासुओं को अमृतपान करा रहे हैं। खतौली समाज में आचार्य संघ के आगमन से अभूतपूर्व उत्साह – उल्लास देखा जा रहा है। प्रातः काल की मंगल बेला में उपस्थित विशाल जनसमूह को धर्मोपदेश प्रदान करते हुए आचार्यश्ची ने कहा-
‘इक संकल्प जगायें हम, इस भव प्रभु को पायें हम भव सागर से तिरने को, गीत प्रभु के गायें हम ।। नयनों में प्रभु का, हो-हो-२, ही रूप समाये रे जीवन है पानी की बूंद, कब मिट जाये रे… चैतन्य गुण से मण्डित जीव पदार्थ इन आँखों से दिखाई नहीं देता । इन आँखों से दिखाई देते हैं मात्र बाहूय जड़ पदार्थ, सो इस चेतन। जीव को अज्ञानता के कारण अपनी स्वयं की महिमा नहीं आती अपितु बाह्य चमक-भड़क के कारण बाहरी जड़ पदार्थों की ही महिमा आती हैं। ध्यान रखना, जिसकी बुद्धि जड़ पदार्थों में लगी है वही “जड़बुद्धि है। ” चेतन जीव के प्रम, गुण, पर्यायों से जड़ पदार्थ के प्रव्य, गुण, पर्याये अत्यंत पृथक हैं” ऐसा जो उपदेश दिया वे “जिनेन्द्र भगवान” है।
बन्धओं ! आप अपने बेटे को शिक्षा के लिए अच्छे से अच्छा स्कूल-कॉलेज ढूंढते हो और आप अपना पूरा जीवन जिस भगवान के चरणों में समर्पित करना चाहते हो उस भगवान की कोई पहिचान नहीं, कोई परीक्षा नहीं। हमेशा ध्यान रखो, हर कोई भगवान नहीं हो सकता भगवान का भी एक रूप – एक स्वरूप होता है, वह स्वरूप है- जो. राग, द्वेष, मोह, क्षुदा, पिपासा आदि 18 दोषों से रहित वीतरागी है, सर्व लोक के समस्त पदार्थों को जानने से जो सर्वज्ञ है और सभी भव्य प्राणियों को हितकारी उपदेश देने से जो हितोपदेशी हैं। यह तीन गुण जिस व्यक्ति विशेष में हों वहीं भगवान हो सकता है अन्यथा मात्र भगवान संज्ञा से कोई भगवान नहीं हो जाता। बन्धुओं! हमें अपने आराध्य भगवान को उनके गुणों से पहिचान कर आराधना करना चाहिए

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