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भिण्ड की माटी में जन्में आचार्य विशुद्ध सागर जी श्रमण संस्कृति विमल-सन्मति-विराग परम्परा के सबसे बड़े संत पट्टाचार्य बने

भिण्ड/ भिण्ड से 15 कि.मी. की दूरी पर ऊमरी के पास स्थित ग्राम रूर में 18 दिसम्बर 1971 को रामनारायण जी जैन के घर में माँ रत्तीबाई जैन की कोख से जन्में राजेन्द्र जैन उर्फ लला ने आज पूरे विश्व में आचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज के रूप में पहचान कायम की है । उनकी त्याग, तपस्या व आध्यात्म के चलते आज वे श्रमण संस्कृति की विमल-सन्मति-विराग परम्परा के सबसे बड़े आचार्य यानि पट्टाचार्य बन गये हैं ।  उन्हें पट्टाचार्य से विभूषित करने के लिए सुमतिधाम इन्दौर में 27 अप्रैल से 02 मई 2025 तक पट्टाचार्य महामहोत्सव का भव्य व ऐतिहासिक आयोजन किया गया है। जिसमें देश-विदेशों से जैन धर्मानुयायी काफी संख्या में पधार रहे हैं । आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के गुरु गणाचार्य विराग सागर जी महाराज ने समाधि से पूर्व अपना उत्तराधिकारी आचार्य विशुद्ध सागर जी को घोषित कर दिया था। जिनका आज सुमतिधाम इन्दौर में 27 अप्रैल से 02 मई तक पट्टाचार्य महामहौत्सव का आयोजन किया जा रहा है । उक्त महामहोत्सव में पूरे भारवतर्ष से लगभग 400 जैनाचार्य, मुनि, क्षुल्लक, ऐलक, आर्यिका, क्षुल्लिका सहित ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने वाले तमाम ब्रह्मचारीगण व श्रेष्ठिजनों लाखों की संख्या में सुमतिधाम इन्दौर पहुंचकर भव्य व ऐतिहासिक पट्टाचार्य महाकुंभ के साक्षी बन रहे हैं। पट्टाचार्य के इस महाकुंभ में भिण्ड जिले से भी हजारों लोग बसों, रेल व अपने-अपने वाहनों से आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के पट्टाचार्य महामहोत्सव में धर्मलाभ लेने के लिए पहुंच रहे हैं। ऋषभ जैन अड़ोखर ने आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के जीवन वृत्त से जुड़ी घटनाओं से बताया कि महाराजश्री अल्पायु से अपने पिताजी श्री रामनारायण जी एवं माताजी श्रीमती रत्ती देवी एवं अपने अग्रजों के साथ प्रतिदिन श्री जिन मंदिर जी दर्शनों के लिए जाने लगे थे ।  आचार्यश्री ने 8 वर्ष की आयु में ही सप्तम व्यसनों का त्याग एवं अष्ट मुल गुणों का पालन करना प्रारंभ कर दिया था ।  13 वर्ष की अल्पायु में तीर्थराज श्री दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र शिखर जी में बिना देवदर्शन के भोजन न करने का का नियम धारण किया तथा अपने ग्राम रूर में स्थित जिनालय में स्वयं ही ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था ।  आचार्य श्री ने अपने गृहस्थ जीवन में ही शिखर जी, सोनागिरि जी सहित अनेक तीर्थक्षेत्रों व कई महामुनिराजों के दर्शन किये जो उनके वैराग्य का कारण बने ।
सोनल जैन पत्रकार ने बताया कि 1988 में पूज्य मुनि श्री 108 विराग सागर जी महाराज का भिण्ड में पावन वर्षा योग हुआ था।  जहां विशुद्ध सागर जी गृहस्थ अवस्था के राजेन्द्र उर्फ लला उस अवधि में अपनी बहन के यहां भिण्ड में रहकर पूज्य गुरुवर के संघ में आते-जाते रहते थे । इससे लम्बे समय तक गुरुवर का सानिध्य मिला उनकी धार्मिकता, वात्सल्य व प्रवचनशैली का विशुद्ध सागर जी पर गहरा प्रभाव पडा जिससे उनका मन विराग सागर जी के चरणों में रम गया और वे संघ में ही रहने लगे और आचार्य श्री के संघ के साथ ही भिण्ड से विहार कर उनके साथ चले गये । आचार्यश्री विशुद्धसागर जी महाराज की 18 वर्ष की उम्र में प्रथम क्षुल्लक दीक्षा यशोधर सागर के रूप 11 अक्टूबर 1989 को भिण्ड में हुई। इसके बाद ऐलक दीक्षा 19 जून 1991 को पन्ना में हुई तथा मुनि दीक्षा 21 नवम्बर 1991 को श्रेयांस गिरि में विशुद्ध सागर के रूप में आचार्यश्री विराग सागर जी महाराज के हस्तकमलों से हुई ।  इसके बाद विशुद्ध सागर जी महाराज के गुरु विराग सागर जी महाराज ने 31 मार्च 2007 को महावीर जयन्ती के पावन अवसर पर औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में विशुद्ध सागर जी महाराज को आचार्य पद से संस्कारित व प्रतिष्ठित किया तब से आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज निरन्तर मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ रहे हैं । आचार्य श्री ने लगभग एक सैकड़ा से अधिक युवाओं को दिगम्बर मुनि दीक्षायें देकर उनके मोक्ष मार्ग को प्रशस्त कर रहे हैं । आचार्य श्री ने तत्व सार, तत्व देशना, वस्तुतत्व महाकाव्य सहित कई गाथायें लिखीं हैं, जिन्हें जैन धर्मानुयायी सहित जैनेत्तर लोग स्वाध्याय करने के साथ-साथ वैज्ञानिक लोग उनकी गाथाओं व रचित साहित्य पर शोध कर रहे हैं। ऋषभ जैन अड़ोखर ने बताया कि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के पट्टाचार्य बनने से भिण्ड जिला अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा है । आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों व साहित्य के जरिये हर दिल में अपनी अलग ही पहचान बनाई है लोग उन्हें चतुर्थ काल के मुनि के रूप में देखकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं ।
सोनल जैन पत्रकार ने बताया कि अहिंसा ग्रुप भिण्ड द्वारा गणाचार्य विराग सागर जी महाराज द्वारा दीक्षित शिष्य व उनके परिशिष्यों की जानकारी का डाटा संकलित कर एक डायरेक्टरी (एल्बम) तैयार की गई है, जिसका विमोचन पट्टाचार्य महाकुम्भ सुमतिधाम इन्दौर में 02 मई 2025 को किया जायेगा ।

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