नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने एक पूर्व फैसले को फिर से पुष्ट करते हुए बिहार में एक दलित महिला सहित तीन उम्मीदवारों को अधीनस्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया है. पूर्व फैसले में कहा गया था कि इंटरव्यू में मूल दस्तावेज पेश करने में विफलता बिहार न्यायिक सेवा नियमों के तहत रोजगार से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है. ताजा निर्णय के अनुसार, बिहार सिविल सेवा नियम, 1955 के समान किसी भी भर्ती नियम पर लागू होना चाहिए, जो देश में अधिकांश सिविल सेवा नियम हैं. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने रेखांकित किया कि तीनों अपीलकर्ताओं ने अपनी श्रेणियों में निर्धारित कट-ऑफ से अधिक अंक प्राप्त किए थे. इसमें कहा गया है कि दलित महिला स्वीटी कुमारी ने एससी वर्ग के कट-ऑफ 405 के मुकाबले 414 अंक हासिल किए थे, विक्रमादित्य मिश्रा ने 543 अंक हासिल किए थे, जबकि अनारक्षित श्रेणी के लिए कट-ऑफ 517 थी और अदिति ने ईडब्ल्यूएस श्रेणी में 499 कट-ऑफ के मुकाबले 501 अंक हासिल किए थे. स्वीटी कुमारी और विक्रमादित्य मिश्रा, जो सिविल जज जूनियर डिवीजन के लिए 30वीं बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगी परीक्षा में शामिल हुए थे, इंटरव्यू में अपने मूल चरित्र प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने में विफल रहे थे. अदिति, जो 31वीं परीक्षा में शामिल हुई थीं, ने अपना मूल कानून डिग्री प्रमाण-पत्र प्रस्तुत नहीं किया था. अदालत ने कहा कि उन सभी ने इंटरव्यू में ‘सच्ची प्रतियां’ पेश कीं – जो एक राजपत्रित अधिकारी द्वारा सत्यापित थीं, जिन्होंने मूल कॉपी की जांच की होगी, लेकिन बिहार सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग एसपीएससी ने उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी. अदालत ने 23 मई, 2022 के शीर्ष अदालत के फैसले का जिक्र करते हुए, जिसमें कहा गया था कि मूल दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं है, कहा, स्वीटी कुमारी और विक्रमादित्य मिश्रा योग्य उम्मीदवार थे, उन्हें आरव जैन सुप्रा और अन्य के बराबर लाभ दिया जाना चाहिए.’ अदालत ने कहा, इसलिए, जवाबदेहों को ईडब्ल्यूएस की एक रिक्ति को उसी परीक्षा के लिए या अगली परीक्षा से समायोजित करने और अदिति को समान लाभ देने का निर्देश दिया जाता है.’ आरव जैन, स्वीटी कुमारी और विक्रमादित्य मिश्रा के समान ही परीक्षा में उपस्थित हुए थे और तीनों की उम्मीदवारी 2019 के अंत में एक सामान्य संचार द्वारा खारिज कर दी गई थी. पटना हाईकोर्ट ने आरव की अपील खारिज कर दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने पिछले साल मई में फैसला सुनाया था कि मूल दस्तावेज जमा न करने की याचिका योग्यता मानदंड या पात्रता मानदंड से उचित नहीं थी. इसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि राज्य सरकारें वैसे भी आकलन के दौरान सत्यापन और सतर्कता रिपोर्ट प्राप्त करती हैं. अदालत ने कहा कि इसलिए, मई 2022 के फैसले में कहा गया कि मूल दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य शर्त नहीं थी. हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने स्वीटी कुमारी और विक्रमादित्य मिश्रा की इसी तरह की याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिससे उन्हें सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा. ताजा फैसले में शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया कि बिहार न्यायिक सेवा नियमों में कहा गया है कि दस्तावेज मूल की ‘सच्ची प्रतियां’ होनी चाहिए, प्रत्येक राजपत्रित अधिकारी द्वारा प्रमाणित होनी चाहिए. इसने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि उम्मीदवार को ‘मौखिक परीक्षा के समय बिहार लोक सेवा आयोग के समक्ष मूल प्रति प्रस्तुत करने की आवश्यकता हो सकती है’. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा, ‘उक्त भाषा यह स्पष्ट करती है कि इंटरव्यू के समय मूल प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य नहीं है, बल्कि निर्देशिका है.’ अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि यहां तक कि पदों के लिए विज्ञापन में केवल यह कहा गया था कि मूल प्रति ‘पास में’ होनी चाहिए, इसने यह नहीं कहा था कि उनको प्रस्तुत करना अनिवार्य है.